आरओआई क्या है

आरटीआई संपर्क (लो०सू०पदा० / स०लो०सू०पदा० / अपी०प्राधि०) : आयुक्त कार्यालय
सूचना का अधिकार (आरटीआई) भारत की संसद का एक अधिनियम है जो नागरिकों के लिए सूचना के अधिकार के व्यावहारिक शासन को स्थापित करने के लिए प्रदान करता है और सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 की जगह लेता है। अधिनियम के प्रावधानों के तहत, भारत का कोई भी नागरिक एक “सार्वजनिक प्राधिकरण” (सरकार का एक निकाय या “राज्य का साधन”) से जानकारी का अनुरोध कर सकता है, जिसे शीघ्रता से या तीस दिनों के भीतर जवाब देना आवश्यक है। अधिनियम में प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को व्यापक प्रसार के लिए अपने रिकॉर्ड आरओआई क्या है आरओआई क्या है को कम्प्यूटरीकृत करने और सूचना की कुछ श्रेणियों को सक्रिय रूप से कंप्यूटरीकृत करने की आवश्यकता है ताकि नागरिकों को औपचारिक रूप से सूचना के लिए अनुरोध करने के लिए न्यूनतम सहारा की आवश्यकता हो।
सीजेआई के इस दावे में कितनी सच्चाई है कि आरटीआई का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग के लिए हो रहा है?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दावा किया कि आरटीआई का इस्तेमाल लोग ब्लैकमेलिंग के लिए कर रहे हैं. हालांकि ख़ुद केंद्र सरकार ने पिछले साल लोकसभा में बताया था कि बड़े स्तर पर आरटीआई के दुरुपयोग का कोई साक्ष्य मौजूद आरओआई क्या है नहीं है. The post सीजेआई के इस दावे में कितनी सच्चाई है कि आरटीआई का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग के लिए हो रहा है? appeared first on The Wire - Hindi.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दावा किया कि आरटीआई का इस्तेमाल लोग ब्लैकमेलिंग के लिए कर रहे हैं. हालांकि ख़ुद केंद्र सरकार ने पिछले साल लोकसभा में बताया था कि बड़े स्तर पर आरटीआई के दुरुपयोग का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान बीते सोमवार को कहा कि वे सूचना के अधिकार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत है.
जस्टिस बोबडे ने कहा, ‘जिन लोगों का किसी मुद्दे विशेष से किसी तरह का कोई सरोकार नहीं होता, वे भी आरटीआई दाखिल कर देते हैं. यह एक तरह से आपराधिक धमकी जैसा है, जैसे ब्लैकमेल करना.’ चीफ जस्टिस ने कहा, कुछ लोग कहते हैं कि वे आरटीआई एक्टिविस्ट हैं, क्या यह कोई पेशा है?
एसए बोबडे के इस बयान को लेकर कई कार्यकर्ताओं, पूर्व सूचना आयुक्तों समेत अन्य लोगों ने आपत्ति जताई है. इनका कहना है कि चीफ जस्टिस किस रिपोर्ट, स्टडी या प्रमाण के आधार पर ये दावा कर रहे हैं कि आरटीआई का इस्तेमाल ब्लैकमेल करने के लिए किया जाता है.
खुद केंद्र सरकार ने पिछले साल 19 दिसंबर को लोकसभा में बताया था कि बड़े स्तर पर आरटीआई के दुरुपयोग का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है और इस संबंध में केंद्र को जानकारी नहीं है.
प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के दुरुपयोग की कोई विशिष्ट जानकारी भारत सरकार के संज्ञान में नहीं लाई गई है.
सिंह ने कहा था कि दुरुपयोग से बचने के लिए आरटीआई कानून में पहले से ही व्यवस्था दी गई है. उन्होंने कहा था, ‘आरटीआई के तहत जानकारी मांगने का अधिकार निरंकुश नहीं है. दुरुपयोग से बचने के लिए आरटीआई एक्ट में धारा-8 है जो कि कुछ सूचनाओं का खुलासा करने से छूट प्रदान करता है.’
उन्होंने आगे कहा था, ‘इसके अलावा धारा-9 है जो कि कुछ मामलों में सूचना नहीं देने का आधार है, धारा-11 के थर्ड पार्टी से संबंधित जानकारी नहीं दी जा सकती और धारा-24 के मुताबिक ये कानून कुछ संगठनों पर लागू नहीं होता है.’
पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने जस्टिस बोबडे के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए लाइव लॉ में लिखे एक लेख में कहा, ‘कोर्ट को जस्टिस मैथ्यू के फैसले और आरटीआई अधिनियम 2005 के लागू होने से पहले दिए गए अपने कई निर्णयों को पढ़ना चाहिए. अनुच्छेद 19(2) और संसद द्वारा पारित कानून के दिशा-निर्देश के तहत आरटीआई के दुरुपयोग पर लगाम लगाई गई है. सरकार द्वारा वैध काम करने में इसके कामकाज के प्रभावित होने का कोई उदाहरण नहीं है. आरटीआई सत्ता के भ्रष्ट या मनमाने कार्य करने वालों के लिए एक बाधा हो सकती है.’
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उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत आरटीआई नागरिकों का मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों में ये माना गया है कि अनुच्छेद 19(1)(ए) में बोलने की आजादी, छापने का अधिकार और सूचना का अधिकार शामिल है.
आरटीआई के जरिये ब्लैकमेल करने के दावे पर उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति बोलता है तो वो किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ आरोप भी लगा सकता है. ये आरोप मीडिया में छपते भी हैं. इसकी वजह से कुछ हद तक हानि भी होती है. लेकिन पिछले 70 सालों में बोलने की आजादी और इसे छापने का दायरा बढ़ा है. किसी ने भी इसकी वजह से इस आजादी को सीमित करने की मांग नहीं की. ये आरोप नहीं लगाए गए कि बोलने की आजादी के वजह से ब्लैकमेलिंग बढ़ रही है.
गांधी ने आगे कहा, ‘लेकिन पिछले 14 सालों में ही सूचना का अधिकार के खिलाफ एक मजबूत धारणा तैयार की गई है. आरटीआई इस्तेमाल करने वालों को ब्लैकमेलर या धन उगाही करने वाला करार दिया जाता है.’
आरटीआई का इस्तेमाल कर एक नागरिक क्या कर सकता है
देश का कोई भी नागरिक सरकारी रिकॉर्ड में मौजूद सूचनाओं की जानकारी मांग सकता है. अगर इन रिकॉर्ड्स के जरिये गैरकानूनी या भ्रष्टाचार के कृत्य का खुलासा होता है तो कुछ लोगों को नुकसान पहुंच सकता आरओआई क्या है है. ऐसे आरोप लगाए जाते हैं कि कुछ लोग आरटीआई के जरिये ऐसी जानकारियां प्राप्त करते हैं और अवैध काम करने वालों को ब्लैकमेल करते हैं.
शैलेष गांधी ने कहा, ‘ऐसे ब्लैकमेलिंग की संभावना बिल्कुल हो सकती है लेकिन ये चीज बोल कर या छाप कर भी की जा सकता है.’
एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने कहा, ‘ये बेहद चिंता की बात है कि हमारे जज ऐसी टिप्पणी कर रहे हैं. सूचना देने से छूट प्राप्त सामग्री का उल्लेख पहले से ही कानून में किया गया है. इतना ही नहीं सरकार ने खुद संसद में कहा कि आरटीआई के दुरुपयोग के कोई साक्ष्य नहीं हैं.’
आरटीआई कानून को लेकर हुए संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा, ‘हमारे (नागरिक) पास ये सुविधा नहीं है कि हम सीलबंद लिफाफे में जानकारी प्राप्त कर सकें. हमारे पास एक ही रास्ता है कि हम आरटीआई के तहत जानकारी मांगे. आरटीआई आम जनता का कानून है. सूचना के दुरुपयोग का समाधान खुलेपन की संस्कृति है.’
आरटीआई का इस्तेमाल कर रिपोर्ट्स लिखने वाले कई पत्रकारों ने भी सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त की और मुख्य न्यायाधीश के बयान पर चिंता जाहिर की.
शैलेष गांधी का कहना है कि हमें इस पूरे मामले को एक अलग नजरिये से देखने की जरूरत है. उन्होंने कहा, हमारा समाज गलत काम या भ्रष्टाचार करने वालों के बजाय जेबकतरों से ज्यादा चिंतित होता है. ये नजरिया सही नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘समाज और सरकार का काम होना चाहिए कि वे ऐसे व्यक्तियों को रोकें जो गलत कार्य या भ्रष्ट कार्य में संलग्न हैं. सतर्कता विभाग का पूरा तंत्र, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, सीबीआई, सीवीसी और लोकपाल इसे रोक नहीं पा रहा है. कई आरटीआई यूजर्स ऐसी चीजों का खुलासा करते हैं और सार्वजनिक रूप से जानकारी साझा करते हैं. कुछ लोग इस जानकारी का गलत तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन हमारी चिंता गलत तरीके से समाज को लूटने वाले भ्रष्ट लोगों को लेकर होना चाहिए.’
हमें ये स्वीकार करना चाहिए हमारे सबसे अच्छे निगरानीकर्ता आरटीआई का इस्तेमाल करने वाले नागरिक हैं जिन्होंने कई बड़े घोटालों को उजागर किया है.
देश भर में सूचना आयुक्तों के पदों को जल्द भरने की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश द्वारा ऐसा बयान देने पर उनसे कहा कि वे आरटीआई का दुरुपयोग रोकने का समाधान लेकर कोर्ट के सामने आएंगे.
चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने वकील प्रशांत भूषण की इस बात पर गौर किया कि 15 फरवरी के आदेश के बावजूद सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं हुई. बेंच ने सरकारों को निर्देश दिया कि वे आज से नियुक्तियां करना शुरू कर दें.
कोर्ट ने अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया कि वे दो हफ्ते के भीतर उस सर्च कमेटी के सदस्यों के नाम सरकारी वेबसाइट पर डालें, जिन्हें सीआईसी के सूचना आयुक्त चुनने की जिम्मेदारी दी गई है. कोर्ट ने कहा कि अगर इस आदेश का पालन नहीं होता है तो अवमानना की कार्रवाई की जाएगी. इस बेंच में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे.
केंद्र की तरफ से पेश वकील ने कहा कि नियुक्तियां करने के लिए सर्च कमेटी पहले ही बनाई जा चुकी है. कोर्ट में दायर याचिका में अदालत से यह गुजारिश की गई थी कि वह निर्धारित समय के भीतर पारदर्शी तरीके से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के निर्देश जारी करे.
शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राज्य सूचना आयोगों (एसआईसी) में तीन महीने के भीतर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया है.
आरटीआई एक्ट में संशोधन: सूचना आयुक्तों के दर्जे को लेकर संशय
By M Sridhar Acharyulu
Published: Wednesday 07 August 2019
Photo Credit: Creative commons
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आगे पढ़ें-
1993 में संसद ने सभी राज्यों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों (एनएचआरसी) की स्थापना के लिए प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स एक्ट लागू किया। 8 जनवरी, 1994 को इसकी अधिसूचना जारी की गई थी। यह कानून जम्मू एवं कश्मीर के अलावा सभी राज्यों में लागू हुआ। वहां इस तरह की संस्था 1997 में राज्य विधानमंडल के एक अधिनियम द्वारा बनी। इस अधिनियम के अनुसार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष भारत के मुख्य न्यायाधीश को मिलने वाले वेतन और सदस्य सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन और भत्ते प्राप्त करने के हकदार हैं। एनएचआरसी और सूचना आयोग, दोनों ही वैधानिक संस्था है, जो संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का काम करते हैं।
अत: संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिलनी चाहिए थी। इसे सेलेक्ट कमेटी या संसद की स्थायी समिति के पास पुनर्विचार के लिए लौटाया जाना चाहिए था। साथ ही, इस पर सभी हितधारकों के साथ उचित आरओआई क्या है परामर्श की भी जरूरत थी। इन सब की अवहेलना सूचना के मौलिक अधिकार पर हमला है।
कानून में संशोधन एनडीए सरकार की चार गलत धारणाओं पर आधारित है:
ए) एनडीए सरकार गलत तरीके से सोचती है और कहती है कि आरटीआई संवैधानिक अधिकार नहीं है, जो एक मौलिक अधिकार है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय है जो बताते है कि आरटीआई मौलिक/ संवैधानिक अधिकार है। इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया।
बी) केंद्र को लगता है कि सीआईसी, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था नहीं हैं, जो त्रुटिपूर्ण है। असल में, संवैधानिक अधिकार को लागू करने वाली प्रत्येक संस्था एक संवैधानिक संस्था है। संविधान लागू किए जाने के समय ही इसका मूल रूप से उल्लेख किया जाना या अस्तित्व में होना आवश्यक नहीं है।
सी) केंद्र को लगता है कि मुख्य चुनाव आयोग (सीईसी) के साथ केंद्रीय निर्वाचन आयोग(सीईसी) की बराबरी करना एक गलती थी। लेकिन यह कहना गलत है कि दोनों एक रैंक के नहीं हैं, क्योंकि ये दोनों संस्थाएं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दो हिस्सों को लागू करती हैं।यानी, सीईसी मतदान का अधिकार और सीआईसी सूचना प्राप्त करने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
डी) केंद्र को लगता है कि आरटीआई अधिनियम 2005 में जल्दबाजी में पारित किया गया था और जल्दबाजी में सीआईसी को सीईसी के बराबर माना गया। तथ्य यह है कि संसद की स्थायी समिति (पीएससी) ने प्रत्येक प्रावधान पर विस्तृत रूप से विचार किया, सरकारी और गैर सरकारी हस्तियों के साथ चर्चा की, लोगों और अन्य हितधारकों से परामर्श किया, मसौदे पर चर्चा हुई और इस पर विस्तृत बहस हुई। संसद की इस स्थायी समिति में भाजपा के सम्मानित सदस्य भी शामिल थे। अंततः ईएमएस नचियप्पन की अध्यक्षता वाली पीएससी ने सूचना आयोग को केंद्रीय चुनाव आयोग का दर्जा देने की सिफारिश की।
निम्नलिखित कारणों से इस विधेयक को पेश करने और पास कराने का तरीका उचित नहीं है
ए) विधेयक को किसी या व्यक्ति/संस्था के समक्ष परामर्श के लिए नहीं रखा गया था। आरटीआई का उपयोग करने वाले महत्वपूर्ण हितधारकों से परामर्श नहीं किया गया था। केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग के वर्तमान या अवकाश प्राप्त सूचना आयुक्तों से भी परामर्श नहीं किया गया।
बी) अगले दिन के एजेंडे की घोषणा होने तक विधेयक की प्रति गुप्त रखी गई थी। यानी, बिल की प्रति सदस्यों को उपलब्ध नहीं कराई गई थी, जिसका अर्थ है कि उन्हें प्रस्ताव का विरोध करने या समर्थन करने की तैयारी के लिए कोई समय नहीं दिया गया था।
सी) प्रस्तावना और विचार के बीच, सांसदों को पर्याप्त समय नहीं दिया गया था।
डी) दिलचस्प रूप से सदन के सदस्यों को इस बात से गुमराह रखा गया कि आखिरकार सूचना आयुक्तों को क्या दर्जा दिया जाएगा, उनका कार्यकाल क्या होगा। 2005 में संसद ने सूचना आयोग को चुनाव आयोग का दर्जा दिया था और दोनों को सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर वेतन दिए जाने की बात की थी। सूचना आयुक्तों के इस निश्चित कार्यकाल और निश्चित वेतन को खत्म करने जैसा कदम एनडीए सरकार की कथित गलत धारणाओं की वजह से सामने आई है। यह कार्यपालिका द्वारा विधायिका की शक्ति को हड़पने जैसा मामला है।
ई) केंद्र सरकार इस तथ्य को लेकर अनिश्चितता पैदा कर रही है कि आखिरकार सूचना आयुक्तों का दर्जा किस हद तक कम किया जाएगा। इससे सूचना आयुक्तों का कार्यकाल और दर्जा बार-बार बदलने की गुंजाइश बनी रहेगी, जिससे सरकार उन्हें हमेशा दबाव में रखेगी और इसलिए सूचना आयुक्त स्वतंत्र रूप से अपने दम पर कार्य करने की स्थिति में नहीं होंगे।
एफ) केंद्र ने दावा किया है कि इससे पारदर्शिता में सुधार होगा, लेकिन खुद इस विधेयक के संबंध में ही कोई पारदर्शिता नहीं है। सीआईसी की स्वतंत्रता को उसके दर्जे को कम करके प्रभावित की गई है, जो आगे चलकर पारदर्शिता को प्रभावित करेगा।
(लेखक पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त और बेनेट विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून के प्रोफेसर हैं)
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आरओआई क्या है
आरटीआई क्या है आरटीआई कब लागू हुआ , RTI कैसे लगाए… पूर्ण जानकारी
दोस्तों आपने आरटीआई एक्ट के बारे में सुना जरूर होगा लेकिन क्या आपको इसके बारे में सही जानकारी है जैसे की आरटीआई क्या है (RTI Kya Hai) आरटीआई एक्ट कब लागू हुआ और किसी भी तरह की सूचना के लिए आरटीआई कैसे लगाया जाए आदि । यदि आप आरटीआई के बारे में पूर्ण जानकारी जानना चाहते है तो 5 मिनट्स का समय देकर इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े।
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सूचना का अधिकार क्या है – RTI Kya Hai
आरटीआई शब्द का पूरा नाम Right to Information है जिसे हिंदी में सूचना का अधिकार कहते है। जिसे 12 अक्टूबर , 2005 को लागू किया गया था।हमारा देश भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है देश के संविधान में लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए अनेक कानून बनाए गए थे इन्हीं कानूनों में से एक सूचना का अधिकार है जिसके तहत हमारे देश में लोकतंत्र को बनाए रखने का काम किया जाता है इस कानून के माध्यम से आम नागरिकों और सरकार के मध्य पारदर्शिता रखी जाती है। इस कानून के माध्यम से देश का प्रत्येक नागरिक देश के किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान से किसी भी प्रकार की सूचना को जानने का अधिकार रखता है। इस एक्ट के माध्यम से कुछ विशेष विभाग (न्यायिक , रिसर्च , डिफेन्स , खुफिया इत्यादि )को छोड़ कर अन्य किसी भी संस्थान से जानकारी प्राप्त कर है।
आरटीआई अधिनियम कब लागू हुआ? (When did the RTI Act come into force)
सूचना का अधिकार कानून को साल 2005 में भारतीय सरकार द्वारा संसद में बिल पारित करवाकर बनाया गया था जिसके पश्चात 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह संविधान में कानून के रूप में स्वीकृत कर लिया गया था। जिसके पश्चात 15 अक्टूबर 2005 को इसे संविधान में राजपत्र में अधिसूचना के जरिए शामिल कर लिया गया उस समय यह कानून जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत पर लागू किया गया था लेकिन अब धारा 370 हटाने आरओआई क्या है के बाद यह जम्मू कश्मीर में भी लागू हो गया है।
किन विभागों में आरटीआई से सूचना प्राप्त नहीं की जा सकती है।
कुछ विभागों/सूचनाओं को आरटीआई के दायरे से बाहर रखा गया है वह निम्नानुसार है
1. किसी भी विभाग की ऐसी गोपनीय सूचनाएं मुझसे हमारे देश की एकता और अखंडता या किसी राज्य की सुरक्षा या किसी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधान यह विदेशी संबंधों के बारे में पता चले।
2. किसी विभाग की ऐसी सूचना जिसे किसी न्यायालय या समकक्ष पीठ द्वारा बाहर प्रकाशित होना निषिद्ध किया गया हो।
3. ऐसी सूचना जिसके बाहर आने से देश की संसद या किसी राज्य की विधानसभा का कोई विशेष अधिकार भंग हो।
4. ऐसी कोई भी सूचना जिससे देश के किसी व्यक्ति की सुरक्षा या जीवन को खतरा हो।
5. ऐसी सूचना जिससे किसी अपराधी को सजा होने या पकड़ने में अड़चन आए।
6. सरकारी मंत्रिमंडल के पत्र सचिवों के विचार विमर्श की सामग्री
आरटीआई के माध्यम से जानकारी कैसे प्राप्त करें (Application Process)
सर्वप्रथम आपको सरकार की ऑफिशियल वेबसाइट rtionline.gov.in पर जाना होगा। जिसके पश्चात होम पेज पर आपको Submit Request बटन देखेगा उसे क्लिक करें
यहां अब एक नया पेज ओपन होगा जहां आपको कुछ गाइडलाइंस लिखी हुई दिखेंगी जिन्हें ध्यान से पढ़ें पूरी गाइडलाइंस पढ़ने के पश्चात नीचे गए बॉक्स पर टिक करने के बाद Submit पर क्लिक करें
जिसके पश्चात आप एक नए पेज पर पहुंचेंगे यहां अपना ईमेल और मोबाइल नंबर दर्ज करें जिससे कि आप एसएमएस के माध्यम से अपनी रिक्वेस्ट के बारे में जानकारी पा सकेंगे अब नीचे दिए गए कैप्चा कोड को भरकर सबमिट बटन पर क्लिक करें .अब नए पेज पर आरटीआई रिक्वेस्ट फॉर्म खुल जाएगा इस फॉर्म पर मांगी गई सभी जानकारियों को सावधानीपूर्वक सही-सही से भरे ।
इसके पश्चात आप अधिकतम 3000 शब्दों में इसका विवरण कर सकते हैं यदि आप गरीबी रेखा के नीचे हैं तो आपको कोई शुल्क नहीं जमा कराना होगा यदि आपके पास बीपीएल कार्ड नहीं है तो आपसे ₹10 का शुल्क लिया जाएगा यदि आप बीपीएल कार्ड धारक है तो वहां पर अपने बीपीएल कार्ड के प्रति अपलोड करें जिसके पश्चात नीचे दिए गए अपलोड बटन पर क्लिक करें यहां पर पूरी प्रक्रिया पूर्ण होती है इसके पश्चात आपको जल्द से जल्द सूचना मुहैया कराई जाएगी। RTI से सूचना मिलने में आपको 30 दिन तक का समय लग सकता है।
RTI का उपयोग कब करना चाहिए
आरटीआई का उपयोग भारत का प्रत्येक नागरिक कर सकता है हमारे देश में लोकतंत्र को बनाए रखने वह प्रत्येक आम नागरिक व सरकार के मध्य पारदर्शिता बनाए रखने के लिए आरटीआई कानून लागू किया गया था यदि आप किसी भी व्यक्ति ,वस्तु ,संस्था स्थान के बारे में कोई भी जानकारी पाना चाहते हैं तो आप आरटीआई के माध्यम से पा सकते हैं यदि वह जानकारी आरटीआई से विमुक्त रखे गए विभागों को सूचनाओं में नहीं आती है तो वह आपको जल्द से जल्द मुहैया करा दी जाएगी।
RTI से आपको क्या लाभ मिलेगा
सूचना के अधिकार कानून के माध्यम से देश के आम नागरिक कई तरह के लाभ प्राप्त कर सकते हैं
1. हमारे देश के किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान या सरकारी विभाग के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
2. देश का प्रत्येक नागरिक इस कानून के माध्यम से सरकार और प्रशासन को पारदर्शी बना सकता है।
3. आरटीआई कानून मुख्य रूप से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए बनाया गया है प्रत्येक नागरिक इससे भ्रष्टाचार मिटाने में सहयोग कर सकता है।
लेखक के अंतिम शब्द
इस आर्टिकल में हमने आपको आर्टिकल के बारे में जानकारी दिया जैसे की आरटीआई क्या है (rTI kya hai), आरटीआई एक्ट कब लागु हुआ और आरटीआई कैसे लगाए। उम्मीद करते है की यह आर्टिकल अच्छा लगा होगा तो इसके बारे में अपनी प्रतिक्रिया दे और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करे