किसी देश की मुद्रा क्या है

3. भूटान: इस देश की मुद्रा का नाम ‘नोंग्त्रुम’ (Ngultrum ) है. यहाँ पर भारत की मुद्रा को भी लेन-देन के लिए स्वीकार किया जाता है. भूटान के कुल निर्यात का लगभग 78% भारत को निर्यात किया जाता है. सितम्बर 2018 तक भूटान की ओर से भारत को तकरीबन 14,917 मिलियन नोंग्त्रुम का आयात भेजा गया था जबकि इस देश द्वारा भारत से लिया गया निर्यात लगभग 12,489 मिलियन नोंग्त्रुम था. भारत का पड़ोसी देश होने के कारण इस देश के निवासी भारत की मुद्रा में जमकर खरीदारी करते हैं क्योंकि इन दोनों देशों की मुद्राओं की वैल्यू लगभग बराबर है और इसी कारण दोनों मुद्राओं के बीच विनिमय किसी देश की मुद्रा क्या है दर में उतार चढ़ाव से होने वाली हानि का कोई डर नहीं होता है.
रुपए की कमजोरी में छिपा है इसकी तंदुरुस्ती का राज
भुवन भास्कर
भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 80.11 का अपना सबसे निचला स्तर छूने के बाद फिलहाल लगभग 50 पैसे मजबूत होकर एक दायरे में स्थिर होता दिख रहा है। लेकिन यह मान लेना कि रुपये के लिए सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है, थोड़ी जल्दबाजी होगी। वैसे तो एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा के मुकाबले मजबूत या कमजोर होना विशुद्ध तौर पर आर्थिक घटना है, लेकिन राजनीतिक शोशेबाजी और जुमलों के दौर में अक्सर रुपये की कमजोरी को राष्ट्रीय स्वाभिमान पर प्रहार के रूप में भी उछाल दिया जाता है और इसलिए कई बार रुपये का कमजोर होना सत्तारूढ़ दल किसी देश की मुद्रा क्या है के लिए आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक चिंता का सबब बन जाता है।
रुपया यदि डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रहा है, तो उसके क्या मायने हैं या फिर कमजोर हो रहा है, उसका क्या मतलब है? चीन दशकों से अपनी मुद्रा युआन को कृत्रिम रूप से कमजोर रख कर अमेरिका के खिलाफ भुगतान संतुलन को अपने पक्ष में रखने में कामयाब रहा है। इसको समझने की आवश्यकता है। जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो इसका मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसके उत्पाद ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी भाव पर उपलब्ध होते हैं।
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इसके उलट यदि कोई मुद्रा डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रही है, तो उसका आयात सस्ता होगा और निर्यात महंगा होगा। जाहिर है कि भुगतान संतुलन के मामले में इसके कारण मजबूत मुद्रा वाला देश हमेशा नुकसान में रहेगा।
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि किसी वस्तु का मूल्य भारत में 80 रुपये है तो अमेरिकी बाजार में वह 1 डॉलर का होगा, लेकिन यदि डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होकर 40 रुपये का हो जाए, तो वही वस्तु अमेरिकी बाजार में 2 डॉलर की हो जाएगी। यह आंकड़ा सिर्फ प्रतीकात्मक और समझाने के लिए है क्योंकि देसी मूल्य में एक्सपोर्ट होने पर ट्रांसपोर्ट, टैक्स इत्यादि कई लागत जुड़ती जाएंगी। लेकिन अनुपात तो इसी तरह रहेगा।
Explainer : क्यों कोई देश जानबूझकर कमजोर बनाता है अपनी करेंसी, कहां और कैसे होता है इसका फायदा?
- News18Hindi
- Last Updated : October 24, 2022, 15:30 IST
हाइलाइट्स
अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा हाल में ही चीन दो बार कर चुका है.
एक बार 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी.
साल 2019 में फिर चीन ने डॉलर के मुकाबले युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी.
नई दिल्ली. अमूमन किसी देश की करेंसी के कमजोर होने को उसकी बिखरती अर्थव्यवस्था का सबूत माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ देश जानबूझकर अपनी मुद्रा को कमजोर बनाते हैं. एक बारगी तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल होता है कि जहां दुनियाभर के देश अपनी मुद्रा को मजबूत बनाने की जुगत में लगे रहते हैं, वहीं कोई देश क्यों अपनी करेंसी को कमजोर बनाएगा, लेकिन यही सवाल जब बाजार और कमोडिटी एक्सपर्ट से पूछा तो जवाब चौंकाने वाले थे.
आईआईएफएल सिक्योरिटीज के कमोडिटी रिसर्च हेड अनुज गुप्ता का कहना है कि ज्यादातर ऐसे देश अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर बनाते हैं, जिन्हें निर्यात के मोर्चे पर लाभ लेना होता है. यानी अगर किसी देश की करेंसी कमजोर होती है, तो उसी अनुपात में उसका निर्यात सस्ता हो जाता है और उद्योगों के पास ज्यादा उत्पादन के मौके बनते हैं. दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर ग्लोबल लेनदेन डॉलर में होता है और जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो उसका उत्पादन भी डॉलर के मुकाबले सस्ता हो जाता है और ग्लोबल मार्केट में उसकी मांग बढ़ जाती है.
किन देशों में भारतीय करेंसी मान्य है और क्यों?
क्या आप जानते हैं कि दुनिया का लगभग 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है? दुनिया भर के लगभग 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमेरिका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है. यही कारण है कि डॉलर को 'अंतरराष्ट्रीय व्यापार करेंसी' भी कहा जाता है.
डॉलर को पूरी दुनिया में इंटरनेशनल करेंसी कहा जाता है. कोई भी देश डॉलर में भुगतान लेने को तैयार हो जाता है. लेकिन क्या इस तरह का सम्मान भारत की मुद्रा रुपया को मिलता है. जी हाँ, भले ही किसी देश की मुद्रा क्या है ‘रुपये’ को डॉलर जितनी आसानी से इंटरनेशनल ट्रेड में स्वीकार ना किया जाता हो लेकिन फिर भी कुछ ऐसे देश हैं जो कि भारत की करेंसी में आसानी से पेमेंट स्वीकार करते हैं. आइये इस लेख में इन सभी देशों के नाम जानते हैं.
Most Expensive Currency: डॉलर नहीं, ये है दुनिया की सबसे महंगी करेंसी, जानें किसी देश की मुद्रा क्या है इसकी तुलना में रुपये की क्या है कीमत?
1 दीनार की कीमत को देखें तो ये इस समय यानी 2 अक्टूबर 2022 को भारत के करीब 263.41 रुपये के बराबर है
इस वजह से कुवैती दीनार है सबसे ताकतवर मुद्रा
कुवैत देश की मुद्रा किसी देश की मुद्रा क्या है कुवैती दीनार (Kuwaiti Dinar) के सबसे ताकतवर होने की एक खास वजह है। ये वजह है कुवैत में पाया जाने वाला तेल का भंडार। इस तेल को कुवैत पूरी दुनिया में निर्यात करता है। इस वजह से कुवैती दीनार की कीमत दुनिया में सबसे ज्यादा है।
पहले भारतीय सरकार ही जारी करती थी करेंसी
आपको जानकर आश्चर्य होगा की आज से 70-80 साल पहले कुवैत में जो करेंसी जारी होता था उसे भारतीय सरकार करती थी। यानि RBI एक समय में कुवैत की करेंसी बनाया करता था और उस करेंसी का नाम था गल्फ रुपि (Gulf Rupee)। यह बहुत हद तक भारतीय रूपया जैसा दिखने में था। इस गल्फ रूपी की खासियत यह थी की इसे भारत के अंदर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। हालांकि 1961 में कुवैत को ब्रिटिश सरकार से आजादी मिली थी, जिसके बाद 1963 में कुवैत पहली अरब कंट्री बन गई थी जहां पर सरकार का चुनाव हुआ था।
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इस तरह गिरी रुपये की वैल्यू
आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल अब तक रुपया 7 फीसदी से ज्यादा कमजोर हो चुका है. रुपये की वैल्यू अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कम होती गई है. अभी प्रमुख मुद्राओं के बास्केट में डॉलर के लगातार मजबूत होने से भी रुपये की स्थिति कमजोर हुई है. करीब दो दशक बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यूरो की वैल्यू कम हुई है, जबकि यूरो (Euro) लगातार अमेरिकी डॉलर से ऊपर रहता आया है. भारतीय रुपये की बात करें तो दिसंबर 2014 से अब तक यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 25 फीसदी से ज्यादा कमजोर हो चुका है. रुपया साल भर पहले अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 74.54 के स्तर पर था.
इन कारणों से बढ़ किसी देश की मुद्रा क्या है रहा डॉलर का भाव
दरअसल बदलते हालात ने पूरी दुनिया के ऊपर मंदी का जोखिम खड़ा कर दिया है. अमेरिका में महंगाई (US Inflation) 41 सालों के उच्च स्तर पर है. इसे काबू करने के लिए फेडरल रिजर्व (Federal Reserve Rate Hike) तेजी से ब्याज दरें बढ़ा रहा है. हालांकि इसके बाद भी महंगाई काबू में नहीं आ रही है. अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने का फायदा अमेरिकी डॉलर को मिल रहा है. अमेरिका आधिकारिक रूप से मंदी की चपेट में आ चुका है और ब्रिटेन समेत कई अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाएं गिरने के मुहाने पर हैं. मंदी (Recession) के डर से विदेशी निवेशक उभरते बाजारों से पैसे निकाल रहे हैं और सुरक्षित इन्वेस्टमेंट के तौर पर डॉलर खरीद रहे हैं. इस परिघटना ने अमेरिकी डॉलर को अप्रत्याशित तरीके से मजबूत किया किसी देश की मुद्रा क्या है है. इसी कारण कई दशक बाद पहली बार अमेरिकी डॉलर की वैल्यू यूरो (Euro) से भी ज्यादा हो गई है, जबकि यूरो अमेरिकी डॉलर से महंगी करेंसी हुआ करती थी. अभी अमेरिकी डॉलर करीब दो दशक के सबसे मजबूत स्तर पर पहुंच चुका है.