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अयोध्या :दस वर्षों से बंद पड़ी है साधन सहकारी समिति

अमृत विचार, जाना बाजार/ अयोध्या। विकासखंड तारुन अंतर्गत साधन सहकारी समिति जानाबाजार दस वर्ष से बंद पड़ी है। यहां गंदगी का अंबार लगा हुआ है। समिति के बंद होने के चलते क्षेत्र के किसानों को खाद, दवा, बीज आदि की समस्या से जूझना पड़ रहा है। समिति से आधा दर्जन ग्राम पंचायतों जाना,पछियाना, खपराडीह, कटौना …

अमृत विचार, जाना बाजार/ अयोध्या। विकासखंड तारुन अंतर्गत साधन सहकारी समिति जानाबाजार दस वर्ष से बंद पड़ी है। यहां गंदगी का अंबार लगा हुआ है। समिति के बंद होने के चलते क्षेत्र के किसानों को खाद, दवा, बीज आदि की समस्या से जूझना पड़ रहा है।
समिति से आधा दर्जन ग्राम पंचायतों जाना,पछियाना, खपराडीह, कटौना आदि गांव के किसान जुड़े हुए हैं।

पूर्व प्रधान राम मोदनवाल, शारदा दुबे, श्याम यादव, अमरजीत वर्मा, गंगाराम यादव, अनंतराम सोनी, बड़े यादव, राजेंद्र यादव, रामकुमार यादव, राजेश वर्मा आदि किसानों ने बताया कि समिति बंद होने के बाद साधन सहकारी समिति बलरामपुर से, नंसा क्षेत्र में चल रही साधन सहकारी समिति और तारुन सहकारी समितियो से कुछ दिनों तक दवा, खाद, बीज ठीक-ठाक मिलता रहा लेकिन अब वह भी नहीं मिल रहा है क्योंकि उस समिति से भी काफी गांव के हजारों किसान जुड़े हुए हैं।

ऐसे में किसानों को जाना क्षेत्र के दुकानदारों से ही खाद, दवा इत्यादि महंगे दामों पर लेना उनकी मजबूरी बन गई है। किसानों का कहना है कि 10 वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी साधन सहकारी समिति जाना की सुधि कोई भी जिम्मेदार अधिकारी नहीं ले रहा है।

मनरेगा देश के ग्रामीण इलाकों में समावेशी विकास का एक मजबूत साधन बना

केन्‍द्र सरकार का महत्‍वाकांक्षी रोजगार गारंटी कार्यक्रम- मनरेगा देश के ग्रामीण इलाकों में समावेशी विकास का एक मजबूत साधन बना है। इससे लोगों को सामाजिक सुरक्षा, आजीविका, सुरक्षा और लोकतांत्रिक सशक्तिकरण सुनिश्चित हुआ है। गरीबों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, मनरेगा केन्‍द्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले में परनहाल में गुज्‍जर बस्ती की मूल निवासी के लिए उस समय वरदान साबित हुआ, जब चौधरी मुनीरा अख्तर द्वारा कड़ी मेहनत से कमाये गये तीन लाख रुपये अपनी तीन साल की बेटी के इलाज में काम आये। उस समय वह बहुत व्‍यथित थी क्‍योंकि परिवार बहुत ही गरीबी से जूझ रहा था।
आकाशवाणी से बातचीत में उन्होंने बताया कि उसे पता चला कि ग्रामीण विकास मंत्रालय, रोजगार गारंटी कार्यक्रम मनरेगा के तहत रोजगार दे रहा है। उसने कुलगाम में ग्रामीण विकास विभाग से सम्‍पर्क किया और उसने मनरेगा कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू किया। फलस्‍वरूप, उसे एक स्थायी आजीविका मिली, परिवार के रोजाना के खर्चों को पूरा करने में मदद मिली और अपनी बेटी का इलाज करा रही है। मुनीरा का बाजार साधन कहना है कि उनकी बस्ती बहुत खस्‍ता हाल में थी, उन्होंने मनरेगा के तहत अन्य कार्यों को करने के अलावा यहां बदलाव लाने का फैसला किया। वहां एक सिंचाई चैनल, गलियां और पानी के टैंक का निर्माण कराया। अब वह एक सफल मनरेगा कार्यकर्ता के रूप में बेरोजगार महिलाओं को आगे आने और योजना का लाभ उठाने के लिए प्रेरित करती हैं। मनरेगा, रोजगार गारंटी कार्यक्रम है।

बैंकिंग अवेयरनेस क्विज 2021- 12 मई, 2021 – मुद्रा बाजार के विभिन्न साधन (Various Instrument of Money Market)

बैंकिंग अवेयरनेस क्विज 2021- 12 मई, 2021 – मुद्रा बाजार के विभिन्न साधन (Various Instrument of Money Market) |_40.1

Sol. The money market consists of financial institutions and dealers in money or credit who wish to either borrow or lend. Participants borrow and lend for short बाजार साधन periods, typically up to twelve months.

Sol. The main money market instruments are Treasury bills, commercial papers, certificate of deposits, and call money. It is highly liquid as it has instruments that have a maturity below one year.

Sol. Capital market refers to facilities and institutional arrangements through which long-term fund, both debt and equity are raised and invested.

Sol. Some general money market features are-It is fund-term market funds, It’s maturity period up to one year, It trades with assets that can be transformed into cash easily, All the transactions take place through phone, email, text, etc., Broker not required for the transaction, The components of a money market are the Commercial Banks, Non-banking financial companies, and Central Bank etc.

Sol. Treasury bills or T-bills, which are money market instruments, are short term debt instruments issued by the Government of India and are presently issued in three tenors, namely, 91 day, 182 day and 364 day. Treasury bills are zero coupon securities and pay no interest.

निवेश कर अमीर बनने के ये हैं 10 बेहतरीन विकल्प

सचाई यह है कि कम जोखिम के साथ बेहतरीन रिटर्न नहीं कमाया जा सकता. वास्तव में जहां रिटर्न अधिक होगा, वहां जोखिम भी अधिक होगा.

निवेश कर अमीर बनने के ये हैं 10 बेहतरीन विकल्प

सचाई यह है कि कम जोखिम के साथ बेहतरीन रिटर्न नहीं कमाया जा सकता. वास्तव में जहां रिटर्न अधिक होगा, वहां बाजार साधन जोखिम भी अधिक होगा.

निवेश के किसी विकल्प को चुनते वक्त आपको जोखिम उठाने की अपनी क्षमता के बारे में जानना-समझना जरूरी है. कुछ निवेश ऐसे हैं जिनमें लंबी अवधि में अधिक जोखिम के साथ अधिक रिटर्न का मौका मिलता है.

निवेश के वास्तव में दो तरीके हैं-वित्तीय और गैर वित्तीय निवेश विकल्प.

इसे भी पढ़ें: कैसे ट्रांसफर करें PPF अकाउंट?

वित्तीय प्रोडक्ट में आप शेयर बाजार से संबद्ध विकल्प (शेयर, म्यूचुअल फंड) चुन सकते हैं या फिक्स्ड इनकम (PPF, बैंक FD आदि) के विकल्प चुन सकते हैं. गैर वित्तीय निवेश विकल्प में सोना, रियल एस्टेट आदि आते हैं. ज्यादातर भारतीय निवेश अब तक निवेश के इसी गैर वित्तीय निवेश विकल्प का प्रयोग करते रहे हैं.

हम आपको यहां बता रहे हैं निवेश के शीर्ष 10 विकल्प:

शेयरों में निवेश
हर किसी के लिए शेयरों में सीधे निवेश करना आसान नहीं है. इसमें रिटर्न की कोई गारंटी भी नहीं है. सही शेयरों का चुनाव मुश्किल काम है, इसके साथ ही शेयर की सही समय पर खरीदारी और सटीक वक्त पर निकलना महत्वपूर्ण है. निवेश के अन्य विकल्पों की तुलना में शेयर में लंबी अवधि में रिटर्न देने की क्षमता सबसे अधिक होती है.

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इक्विटी म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंड की यह कैटेगरी शेयरों में निवेश से ही रिटर्न कमाती है. सेबी के निर्देश के मुताबिक जो म्यूचुअल फंड स्कीम अपने फंड का 65% शेयरों में निवेश करती है, वह इक्विटी म्यूचुअल फंड कहलाती है. इसमें एक फंड मैनेजर होता है जो पर्याप्त रिसर्च के बाद निवेश के लायक शेयर चुनता है और उसमें निवेश करता है.

इक्विटी स्कीम बाजार पूंजीकरण या सेक्टर के हिसाब से अलग हो सकती हैं. इस समय इक्विटी म्यूचुअल फंड का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 15फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.

डेट म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंड की यह कैटेगरी उन निवेशकों के लिए सही है जो निवेश से गारंटीड रिटर्न कमाना चाहते हैं. ये म्यूचुअल फंड कॉरपोरेट बांड्स, सरकारी सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल्स, कमर्शियल पेपर आदि में निवेश से रिटर्न कमाती है. इस समय डेट म्यूचुअल फंड का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 6.5, 8 और 7.5 फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.

नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS)
नेशनल पेंशन सिस्टम (nps) का प्रदर्शन पिछले कुछ सालों में अच्छा रहा है. बहुत कम फीस स्ट्रक्चर भी इसे निवेश का आकर्षक विकल्प बनाता है. बाजार से जुड़े उत्पादों में देश में यह सबसे कम खर्च वाला प्रोडक्ट है. निकासी संबंधी नियमों में बदलाव और अतिरिक्त टैक्स-छूट की वजह से भी यह निवेशक की पसंद में शामिल हो गया है.

एनपीएस बच्चों की शिक्षा, शादी, घर बनाने या किसी मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में आंशिक निकासी की सुविधा देता है. इसमें हालांकि रिटायरमेंट के बाद भी आपको निवेश में बने रहना जरूरी होता है. यह वास्तव में शेयर, FD, कॉरपोरेट बांड, लिक्विड फंड और सरकारी निवेश विकल्प का मिला जुला रूप है.

इस समय NPS का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 9.5, 8.5 और 11 फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.

पीपीएफ
देश में निवेशकों के बीच पीपीएफ सर्वाधिक लोकप्रिय बचत योजनाओं में से एक है. इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 80C के तहत किसी एक वित्त वर्ष में आप पीपीएफ में 1.5 लाख रुपये के निवेश पर टैक्स छूट प्राप्त कर सकते हैं.

निवेश के इस विकल्प की सबसे अच्छी बात यह है कि यह आपको EEE (निवेश के वक्त करमुक्त, ब्याज पर करमुक्त, निवेश भुनाने पर करमुक्त) का लाभ देता है.
निवेश के इस विकल्प में सरकारी गारंटी इसकी लोकप्रियता को और बढ़ा देती है.

बैंक FD
बैंक या पोस्ट ऑफिस में कराई जाने वाली टैक्स सेविंग FD से आप निवेश के वक्त सेक्शन 80C के तहत टैक्स बचा सकते हैं. यह निवेश का सुरक्षित और गारंटीड रिटर्न वाला विकल्प है. इस पर मिलने वाले ब्याज पर आपको इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ता है.

डिपाजिट इंश्योरेंस एवं क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन के हिसाब से आपकी एक लाख रुपये तक की जमा रकम बीमित है.

सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम (SCSS)
पोस्ट ऑफिस की तरफ से बेस्टसेलर के रूप में यह स्कीम रिटायर्ड लोगों के लिए निवेश का पसंदीदा स्रोत है. यह सेवानिवृत लोगों के लिए आय का नियमित स्रोत भी है. इस स्कीम की अवधि पांच साल है जिसे तीन साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है.

इसमें हालांकि प्रति व्यक्ति 15 लाख रुपये की अधिकतम निवेश सीमा है. यह 60 साल से अधिक उम्र के बाजार साधन निवेशकों के लिए ही खुली है, हालांकि सेना से रिटायर मेंट लेने वाले लोगों के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है.

विशेषज्ञों का मानना है कि जीवन भर की बचत को पार्क करने और उस पर कमाई के हिसाब से यह स्कीम बेहतरीन है. यह सेवानिवृत लोगों की जरूरत के हिसाब से बनाया गया है.

रिजर्व बैंक के टैक्सेबल बांड्स
पहले इस स्कीम में आठ फीसदी सालाना का ब्याज मिलता था जिसे सरकार ने बदल कर अब 7.75 फीसदी ब्याज वाला विकल्प बना दिया है. इस बांड में पांच साल के लिए निवेश किया जा सकता है.

रियल एस्टेट
खुद के रहने के हिसाब से घर खरीदना अब निवेश के लिहाज से भी आकर्षक विकल्प बनकर उभरा है. अगर आपको रहने की जरूरत नहीं है तो आप निवेश के हिसाब से भी दूसरा घर खरीद सकते हैं. निवेश के इस विकल्प में आपको सिर्फ प्रॉपर्टी की लोकेशन और वहां मौजूद सुविधाओं का ध्यान रखने की जरूरत है.

इसमें निवेश से आप पूंजी में इजाफा और किराये से आमदनी, दो तरीके से रिटर्न कमा सकते हैं.

सोना
निवेश का यह विकल्प सदियों से भारतीयों की पसंद में शामिल है, पहनने के लिए खरीदी जाने वाली ज्वेलरी से लेकर निवेश के रूप में खरीदे गए सिक्के और बार तक, सोना बिना किसी संदेह के भारतीयों की पसंद में सबसे ऊपर है. अब आप पेपर गोल्ड के रूप में भी सोने में निवेश कर सकते हैं.

गोल्ड ETF में निवेश करना और भुनाना दोनों ही शेयर बाजार के जरिये होता है.

आप क्या करें
निवेश के कुछ विकल्प शेयर बाजार से संबद्ध हैं तो कुछ निश्चित ब्याज वाले हैं. आप जोखिम लेने की अपनी क्षमता के हिसाब से ही बाजार साधन रिटर्न की उम्मीद रखें.

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प्रश्न 50 : वितरण के सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।

उत्तर: सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त

सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त वितरण का केन्द्रीय सिद्धान्त माना जाता है और यह प्रकट करता है कि राष्ट्रीय लाभांश में उत्पत्ति के प्रत्येक साधन का भाग किस प्रकार निर्धारित होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार राष्ट्रीय आय में से उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को जो भाग मिलता है वह उस साधन की सीमान्त उत्पादकता के बराबर होता है।

सीमान्त उत्पादकता का अभिप्राय

किसी साधन की सीमान्त उत्पादकता से अभिप्राय कुल उत्पत्ति में की गई उस वृद्धि से होता है जो साधन की अन्तिम या सीमान्त इकाई के उपयोग द्वारा होती है। किसी एक साधन की सीमान्त उत्पत्ति ज्ञात करने के लिए उत्पत्ति के अन्य साधनों को यथावत् सीमित या स्थिर रखकर इस साधन की एक इकाई बढ़ाई जाती है और उस इकाई से जितना उत्पादन बढ़ता है। वही उस साधन की सीमान्त उत्पत्ति कहलाती है। जैसे किसी फर्म में 20 श्रमिक लगाने से 100 रु. आय होती है। अब यदि फर्म के अन्य साधन यथावत् रखे जाते हैं किन्तु 20 श्रमिकों के स्थान पर 21 श्रमिक कर दिये जाते हैं तो कुल आय 104 रु. होती है। अर्थात् अन्तिम नये श्रमिक को लगाने से आय में 4 रु. की वृद्धि हुई। ये 4 रु. सीमान्त उत्पत्ति कहलायेगी और 4 रु. एक श्रमिक की मजदूरी निर्धारित हो जायेगी। इसी प्रकार हम उत्पत्ति के प्रत्येक साधन की सीमान्त उत्पत्ति का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त की मान्यताएं

इस सिद्धान्त की कुछ मान्यताएं हैं जिनके पूरे होने पर ही यह सही होता है

1. उत्पत्ति के साधन गतिशील होना चाहिए- उत्पत्ति के साधन में गतिशीलता होने पर ही उनका एक स्थान से दूसरे स्थान या एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में प्रयोग किया जा सकता है।

2 दीर्घकालीन अवधि होना चाहिए- इस सिद्धान्त की क्रियाशीलता के लिए दीर्घकाल की अवधि होना चाहिए।

3. पूर्ण प्रतियोगी होना चाहिए- बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता होने पर ही प्रत्येक या का विभिन्न स्थानों पर सामान्य मूल्य रहता है। अतः सिद्धान्त की क्रियाशीलता के लिए विभिन्न साधनों तथा व्यवसायों में पुरस्कार प्रतियोगिता होना चाहिए।

4. व्यवसाय में क्रमागत उत्पत्ति ह्रास लागू होना- जब किसी साधन की मात्रा में वृद्धि की जाती हैं किन्तु अन्य बातें समान हैं तब कुल उत्पत्ति में घटती हुई दर से वृद्धि हो अन्यथा प्रत्येक साधन की इकाइयों को उनकी सीमान्त उत्पत्ति के बराबर' पुरस्कार नहीं मिल सकेगा।

5. साधनों की समस्त इकाइयां समान होना चाहिए- साधनों की समान इकाइयां होने पर ही यह सिद्धान्त क्रियाशील होता है। यदि इकाइयों में अन्तर है तो उनका प्रतिस्थापन । किया जा सकेगा और उनके पुरस्कार भी अलग-अलग होंगे।

6. उत्पत्ति के एक साधन के स्थान पर दूसरे साधन के प्रयोग का हो सकना सम्भव है- उत्पत्ति के विभिन्न साधनों की मात्रा में सीमान्त पर प्रतिस्थापन होने की सम्भावना हो क्योंकि तब ही प्रत्येक साधन को उसका पुरस्कार उसकी सीमान्त उत्पत्ति के बराबर दिया जा सकेगा।

7. साधन का विभाजन सम्भव बाजार साधन होना चाहिए- इस सिद्धान्त की क्रियाशीलता हेतु उत्पत्ति के साधन में विभाजनशीलता हो। अर्थात् साधन की मात्रा में परिवर्तन किया जा सके।

सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त की आलोचनायें

1. श्रम की सीमान्त उत्पादकता केवल कुशलता पर निर्भर नहीं है- श्रम की उत्पादकता उसकी कार्य कुशलता के अतिरिक्त उत्पत्ति की तकनीक, कच्चा माल, औजार आदि पर निर्भर है। किन्तु इस सिद्धान्त में उत्पादन वृद्धि करने की विभिन्न नीतियों पर ध्यान नहीं दिया गया है तथा श्रमिक की कुशलता को ही उत्पादन वृद्धि का कारण माना है। यह भ्रामक तथा त्रटिपर्ण है।

2. श्रम की पूर्ति पर ध्यान नहीं- यह सिद्धान्त श्रम की मांग पर तो ध्यान देता है कि श्रम की पूर्ति पर ध्यान नहीं देता है । हम जानते हैं कि श्रम की पूर्ति सीमित है। सीमित पति के कारण श्रमिक को उसकी सीमान्त उत्पत्ति से अधिक वेतन मिलेगा। अत: मजदरी का सही सिद्धान्त वही होगा जो श्रम की मांग पूर्ति पर समान रूप से ध्यान दे।

3. अतिरिक्त मजदूरी तथा अतिरिक्त उत्पादन माप नहीं- अतिरिक्त मजदरी की भांति अतिरिक्त उत्पादन का माप भी असम्भव है क्योंकि उत्पत्ति विभिन्न साधनों के संयक्त प्रयत्नों का फल है। इसलिए मजदूरी की उत्पत्ति में योग मालुम करना कठिन है।

4. सिद्धान्त सभी दिशाओं में लागू नहीं होता है- यदि उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के बीच प्रतिस्थापन नहीं हो तो सीमान्त उत्पत्ति का मालुम करना कठिन है ।

5. उत्पादन का मूल्य- इस सिद्धान्त के अनुसार, श्रमिक को उसकी सीमान्त उत्पत्ति के बराबर मजदूरी मिलती है। किन्तु जब उत्पत्ति बढ़ती है तो उसका मूल्य घटेगा । फलस्वरूप मजदूरी की दर में कमी होगी । अतः श्रमिकों द्वारा उत्पादन बढ़ाने का यह अर्थ नहीं है कि नियोक्ता की मजदूरी देने की क्षमता में भी आनुपातिक वृद्धि हो गई है।

6. पूर्ण प्रतियोगिता तथा श्रम की गतिशीलता की मान्यता अव्यवहारिक है- यह सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता तथा श्रम गतिशीलता की कल्पना करता है, किन्तु ये कल्पनाएं अव्यावहारिक हैं । न तो श्रम इतना गतिशील होता है तथा न व्यवहार में पूर्ण प्रतियोगिता की दशाएं उपस्थित रहती हैं। इस कारण से मजदूरी सीमान्त उत्पादकता से कम या अधिक हो सकती है। अगर पूर्ण गतिशीलता होती तो सभी उद्योगों में मजदूरी की दर संमान होती । दूसरे, मजदूरी नियोक्ता पर भी निर्भर करती है। अच्छे नियोक्ता अधिक तथा बुरे नियोक्ता कम मजदूरी देते हैं ।

7. उत्पादन के साधनों के अनुपात में परिवर्तन करना भी सम्भव नहीं होता है- अन्यथा उत्पति अधिकतम नहीं हो पाएगी। फलस्वरूप सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त का प्रयोग सम्भव नहीं हो पायेगा।

8. उत्पादक की अज्ञानता- उत्पादक को श्रमिक को नियोजित करते समय उसकी सीमान्त उत्पादकता के विषय में अज्ञान रहता है। इसलिये उसके लिये इस सिद्धान्त का कोई महत्व नहीं होता है।

9. श्रम की मात्रा में परिवर्तन करना सम्भव नहीं- उत्पत्ति के अन्य साधनों के स्थिर रहने पर श्रम की मात्रा में परिवर्तन करना सम्भव नहीं होता क्योंकि श्रमिकों की संख्या बढ़ने पर उत्पत्ति के अन्य साधनों को बढ़ाया जाना आवश्यक है, अन्यथा श्रमिकों का पूरा विदोहन नहीं हो पायेगा तथा उनकी पूरी कुशलता मालुम नहीं होगी। किन्तु यह सिद्धान्त अन्य साधनों में परिवर्तन किये बिना श्रमिकों की संख्या में परिवर्तन करने की कल्पना करता है।

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