अभौतिक खाता

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भौतिकता सिद्धांत में कहा गया है कि एक लेखांकन मानक को नजरअंदाज किया जा सकता है यदि ऐसा करने का शुद्ध प्रभाव वित्तीय विवरणों पर इतना कम प्रभाव डालता है कि बयानों के उपयोगकर्ता को गुमराह नहीं किया जाएगा। आम तौर पर स्वीकृत लेखा सिद्धांतों (जीएएपी) के तहत, यदि कोई वस्तु सारहीन है तो आपको लेखांकन मानक के प्रावधानों को लागू करने की आवश्यकता नहीं है। यह परिभाषा भौतिक जानकारी को अभौतिक जानकारी से अलग करने में निश्चित मार्गदर्शन प्रदान नहीं करती है, इसलिए यह तय करने में निर्णय लेना आवश्यक है कि कोई लेनदेन भौतिक है या नहीं।
सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन ने प्रस्तुति के उद्देश्यों के लिए सुझाव दिया है कि कुल संपत्ति के कम से कम 5% का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तु को बैलेंस शीट में अलग से खुलासा किया जाना चाहिए। हालांकि, बहुत छोटी वस्तुओं को सामग्री माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई छोटी वस्तु शुद्ध लाभ को शुद्ध हानि में बदल देती है, तो इसे भौतिक माना जा सकता है, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो। इसी तरह, एक लेनदेन को भौतिक माना जाएगा यदि वित्तीय विवरणों में शामिल होने से एक इकाई को अपने ऋणदाता अनुबंधों के अनुपालन से बाहर लाने के लिए पर्याप्त अनुपात बदल जाएगा।
स्पष्ट रूप से अभौतिक वस्तु के उदाहरण के रूप में, आपके पास पोस्ट ऑफिस बॉक्स पर $ 100 का प्रीपेड किराया हो सकता है जो अगले छह महीनों को कवर करता है; मिलान सिद्धांत के तहत, आपको छह महीने से अधिक के खर्च के लिए किराया वसूल करना चाहिए। हालांकि, खर्च की राशि इतनी कम है कि वित्तीय विवरणों के किसी भी पाठक को गुमराह नहीं किया जाएगा यदि पूरे $ 100 को वर्तमान अवधि में खर्च करने के लिए चार्ज किया जाता है, बजाय इसे उपयोग अवधि में फैलाने के। वास्तव में, यदि वित्तीय विवरणों को निकटतम हजार या मिलियन डॉलर में गोल किया जाता है, तो यह लेनदेन वित्तीय विवरणों को बिल्कुल भी नहीं बदलेगा।
भौतिकता की अवधारणा इकाई के आकार के आधार पर भिन्न होती है। एक विशाल बहु-राष्ट्रीय कंपनी अपनी कुल गतिविधि के अनुपात में $ 1 मिलियन के लेन-देन को सारहीन मान सकती है, लेकिन $ 1 मिलियन एक छोटी स्थानीय फर्म के राजस्व से अधिक हो सकती है, और इसलिए उस छोटी कंपनी के लिए बहुत सामग्री होगी।
भौतिकता सिद्धांत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब यह तय किया जाता है कि लेनदेन को समापन प्रक्रिया के हिस्से के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ लेनदेन को समाप्त करने से वित्तीय विवरण जारी करने के लिए आवश्यक समय की मात्रा में काफी कमी आ सकती है। कंपनी के लेखा परीक्षकों के साथ चर्चा करना उपयोगी है कि एक भौतिक वस्तु क्या है, ताकि वित्तीय विवरणों की लेखा परीक्षा के दौरान इन मदों के साथ कोई समस्या न हो।
अभौतिक खाता
चित्त मन का सबसे भीतरी आयाम है, जिसका संबंध उस चीज से है जिसे हम चेतना कहते हैं।
अगर आपका मन सचेतन हो गया, अगर आपने चित्त पर एक खास स्तर का सचेतन नियंत्रण पा लिया, तो आपकी पहुंच अपनी चेतना तक हो जाएगी। हम लोग जिसे चेतना कह रहे हैं, वो वह आयाम है, जो न तो भौतिक है और न ही विद्युतीय और न ही यह विद्युत चुंबकीय है।
यह भौतिक आयाम से अभौतिक आयाम की ओर एक बहुत बड़ा परिवर्तन है। यह अभौतिक ही है, जिसकी गोद में भौतिक घटित हो रहा है। भौतिक तो एक छोटी सी घटना है। इस पूरे ब्रह्माण्ड का मुश्किल से दो प्रतिशत या शायद एक प्रतिशत हिस्सा ही भौतिक है, बाकी सब अभौतिक ही है। योगिक शब्दावली में इस अभौतिक को हम एक खास तरह की ध्वनि से जोड़ते हैं।
हालांकि आज के दौर में यह समझ बहुत बुरी तरह से विकृत हो चुकी है, इस ध्वनि को हम ‘शि-व’ कहते हैं। शिव का मतलब है, ‘जो है नहीं’। जब हम शिव कहते हैं तो हमारा आशय पर्वत पर बैठे किसी इंसान से नहीं होता। हम लोग एक ऐसे आयाम की बात कर रहे होते हैं, जो है नहीं, लेकिन इसी ‘नहीं होने’ के अभौतिक आयाम की गोद में ही हरेक चीज घटित हो रही है।
तो यह हमारे भीतर मौजूद इन्टेलिजेन्स व प्रज्ञा का आयाम है, जो अभौतिक खाता एक तरीके से हमारे निर्माण का आधार है। अगर आप रोटी का एक टुकड़ा खाते हैं, तो कुछ घंटों में रोटी इंसान में बदल जाएगी, क्योंकि यह इन्टेलिजेन्स व प्रज्ञा आपके और हमारे भीतर मौजूद है। योगिक संस्कृति में बेहद शरारती ढंग से कहा गया है, ‘अगर आप अपने चित्त को छू लेंगे, अगर आप अपनी इन्टेलिजेन्स के उस आयाम तक पहुंच जाएंगे, तो ईर भी आपका दास हो जाएगा।’ आपको सोचना नहीं होगा कि आप क्या चाहते हैं, जो चाहिए आपको उसकी तलाश भी नहीं करनी होगी।
अगर आप इस इन्टेलिजेन्स तक पहुंच गए तो आप जिस चीज को भी जानने की कामना करेंगे, वह आपकी हो जाएगी। आपको बस अपना ध्यान सही दिशा में केंद्रित करना होगा और सब कुछ आपके पास होगा, क्योंकि चित्त का आयाम मौजूद है। हर इंसान किसी न किसी समय इत्तेफाक से इस आयाम तक शायद पहुंच पाया हो - यह क्षण अचानक उस इंसान की जिंदगी को एक जादुई अहसास से भर देता है। अब सवाल सिर्फ यह है कि सचेतन तरीके से वहां कैसे पहुंचा जाए और वहां कैसे कायम रहा जाए।
शेयरधारकों के लिए महत्वपूर्ण घोषणा
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मकर संक्रांति घी-खिचड़ी खाने का दिन
मकर संक्रांति भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परंपरा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है। इस त्योहार का संबंध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीजें ही जीवन का आधार हैं। प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को पूजा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में भौतिक एवं अभौतिक तत्त्वों की आत्मा कहा गया है। इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती अनाज उत्पन्न करती है, जिससे जीव समुदाय का अभौतिक खाता भरण-पोषण होता है। यह एक अति महत्त्वपूर्ण धार्मिक कृत्य एवं उत्सव है। लगभग 80 वर्ष पूर्व उन दिनों के पंचांगों के अनुसार, यह 12वीं या 13वीं जनवरी को पड़ती थी, किंतु अब विषुवतों के अग्रगमन (अयनचलन) के कारण 13वीं या 14वीं जनवरी को पड़ा करती है। वर्ष 2022 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन लोग तीर्थ-स्थलों पर स्नान भी करते हैं। हिमाचल में तत्तापानी व अन्य स्थानों पर स्नान के लिए मेले लगते हैं। तत्तापानी में हर वर्ष हजारों की भीड़ जुटती है। लोग पहले स्नान करते हैं, फिर खिचड़ी का दान करते हैं। इस दिन तुलादान का भी विशेष महत्त्व है। तत्तापानी में तुलादान के लिए विशेष पंडाल लगे होते हैं।
तुलादान में विभिन्न तरह का अनाज, नमक तथा लोहा इत्यादि दान किया जाता है। जितना एक आदमी का भार होता है, उतने ही अनुपात में अनाज, नमक और लोहे का दान करना होता है। दान में कुछ पैसे भी दिए जाते हैं। नहाने, खिचड़ी दान करने तथा तुलादान के बाद ही लोग कुछ खाते हैं। इस दिन तिल से बनी चीजों को विशेष रूप से खाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि इस दिन दान करने से आने वाले समय में शुभ लाभ मिलता है। तत्तापानी, शिमला से कुछ किलोमीटर दूर मंडी जिले में पड़ता है। यहां मंडी जिले की सीमा शिमला जिले से लगती है। इसी तरह प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी स्नान के लिए इस दिन भीड़ जुटती है। जो लोग तीर्थ स्थलों पर नहीं जा पाते हैं, वे नजदीक के छोटे-छोटे तालाबों अथवा नदियों में ही स्नान करके पुण्य कमाते हैं। तत्तापानी में अब आधुनिकीकरण के तहत जल स्रोतों को संवारा गया है। यहां पर अब पहले से बेहतर व्यवस्था की अभौतिक खाता गई है। लोगों के आने-जाने के लिए परिवहन की भी माकूल व्यवस्था की गई है। ऐसा भी माना जाता है कि जो लोग तीर्थ स्थलों के जल स्रोतों की सफाई की तरफ विशेष ध्यान देते हैं, उन्हें अवश्य ही पुण्य की प्राप्ति होती है।