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बाजार विभक्तिकरण का महत्व

बाजार विभक्तिकरण का महत्व

bcom question paper 2022-23 Marketing and Salesmanship bcom 1st year

3. Explain the meaning and definition of market segmentation?

बाजार विभक्ति करण का अर्थ एवं परिभाषा बताएं ।

4. explain the features and scope of salesmanship

बिक्री कौशल की विशेषताओं और क्षेत्र की व्याख्या करें ।

5. What are the qualities of a successful salesperson ? briefly explain it.

एक सफल विक्रेता के क्या गुण है संक्षेप में इसकी व्याख्या करें ।

6. Briefly explain the stages of the selling process

विक्रय प्रक्रिया के विभिन्न अवस्थाओं को संक्षेप में समझाइए ।

7. Explain the classification of market

बाजार के वर्गीकरण की व्याख्या करें ।

8.Briefly explain the function of a salesperson

एक विक्रेता के कार्यों की संक्षेप में व्याख्या करें ।

Section C /खण्ड स

Long answer type questions

1. What is meant by marketing explain the importance and function of marketing.

विपणन से क्या आशय है विपणन के महत्व तथा कार्यों को बताइए ।

2. What is meant by marketing mix explain product classification.

विपणन मिश्रण का क्या अर्थ है? उत्पाद वर्गीकरण की व्याख्या करें ।

3. What is the selling process? discuss the stages involved in it.

विक्रय प्रक्रिया से आपका क्या अभिप्राय है विक्रय प्रक्रिया के प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए ।

4. Discuss the advantages and limitations in selling as a career

‘विक्रय एक पेशे के रूप में’ के लाभों और सीमाओं की चर्चा कीजिए ।

bcom 1st year Skill Development

bcom 1st year Skill Development Marketing and Salesmanship question paper 2022

Skill Development Vocational Course
Marketing and Salesmanship (विपणन एवं विक्रय कौशल ) B.Com First Semester Examination 2022

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बाजार विभक्तिकरण का महत्व

Principles & Practice of Marketing
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Principles-Practice-of-Marketing- books

Principles & Practice of Marketing

    • Name of the Textbook: विपणन के सिद्धान्त एवं व्यवहार (Principles & Practice of Marketing)
    • Author(s): Dr. S.C. Jain
    • Publisher: Sahitya Bhawan Publications
    • Language: Hindi
    • Book: New
      (Save with offers)Pay with (Debit/Credit,Paytm,UPI,Gpay,Phonepe) and get 3% refund in 24 hr.

    Services:

    Description

    विपणन के सिद्धान्त एवं व्यवहार Principles & Practice of Marketing Book विषय-सूची

    परिचय (विपणन का स्वभाव एवं क्षेत्र, महत्व, कार्य, विचारधारा, परम्परागत एवं आधुनिक, विक्रय बनाम विपणन)
    विपणन-मिश्रण एवं विपणन-वातावरण
    ई-मार्केटिंग
    पभोक्ता व्यवहार (स्वभाव, क्षेत्र, महत्व एवं प्रभावित करने वाले घटक)
    बाजार विभक्तिकरण (विचारधारा एवं महत्व, बाजार विभक्तिकरण के आधार)
    संवर्द्धन (संवर्द्धन के तरीकेय अनुकूलतम संवर्द्धन सम्मिश्रण)
    वैयक्तिक विक्रय
    वस्तु (वस्तु विचारधारा, उपभोक्ता एवं औद्योगिक वस्तु एवं वस्तु/उत्पादन जीवन-चक्र)
    वस्तु-नियोजन एवं विकास
    पैकेजिंग (भूमिका एवं कार्यय ब्राण्ड नाम एवं ट्रेडमार्क)
    मूल्य (विपणन में मूल्य का महत्व एवं वस्तु के मूल्य को प्रभावित करने वाले घटक, प्रकार तथा निर्धारण मूल्य)
    वितरण-माध्यम (विचारधारा एवं भूमिका, प्रकार तथा चुनाव को प्रभावित करने वाले घटक)
    फुटकर एवं थोक विक्रेता
    वस्तुओं का भौतिक वितरणय स्टाक नियन्त्रण एवं आदेश प्रोसेसिंग
    परिवहन एवं भण्डारण

    Marketing Management (विपणन प्रबन्ध) For B.B.A. & M.B.A.

    प्रस्तुत पुस्तक ‘विपणन प्रबन्ध’ (Marketing Management) विभिन्न पाठ्यक्रमों जैसे की बी.बी.ए (BBA), एम.बी.ए (MBA) आदि के विद्यार्थियों के लिए बाजार विभक्तिकरण का महत्व एक अत्यंत उपयोगी पुस्तक है। यह पुस्तक संशोधन होने के पश्चात नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार तैयार करी गई है। वर्तमान संस्करण का सृजन विषय-सामग्री, गुड़वत्ता तथा प्रस्तुतीकरण तीनों दृष्टि से अपनी विशेष पहचान चिन्हित्त करने के लिए प्रयासरत है । विद्यार्थियों की सहायता हेतु, पुस्तक की विषय-सामग्री सरल, सुबोध एवं बोधगम्य भाषा में दी गई है एवं उचित स्थान पर आवश्यक आंकड़े, उदहारण, सारिणी,आदि का उपयोग करा गया है। प्रत्येक अध्याय के सिद्धांतों को समझने के लिए एवं स्वयं का आंकलन करने के लिए अध्याय के अंत में विभिन्न विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं में पूछे गए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions), लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions) एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions) दिए गए हैं।

    विषय सूची जानने के लिए ‘Look inside’ बटन पर क्लिक करे या ‘Scroll Down’ करे।

    विषय सूची :-

    1. विपणन 2. विपणन अवधारणा अथवा विपणन विचार अथवा विचारधारा 3. विपणन प्रबन्ध 4. विपणन मिश्रण (अन्तर्लय) विचार (अवधारणा) 5. व्यूहरचित विपणन नियोजन – एक दृष्टिपात

    6. विपणन पर्यावरण ( वातावरण ) 7. बाजार विभक्तिकरण एवं स्थितिकरण 8. उपभोक्ता व्यवहार अथवा क्रेता व्यवहार 9. उपभोक्ता बनाम् संगठनात्मक क्रेता तथा उपभोक्ता निर्णयन प्रक्रिया

    10. उत्पाद 11. उत्पाद पहचान 12. उत्पाद जीवन चक्र 13. नवीन उत्पाद विकास एवं उपभोक्ता अनुकूल प्रक्रिया

    14. मूल्य अथवा कीमत निर्णय

    15. वितरण वाहिकाएँ अथवा वितरण माध्यम 16. थोक विक्रेता अथवा थोक वितरण प्रबन्ध 17. फुटकर वितरण प्रबन्ध 18. भौतिक वितरण प्रबध

    19. प्रवर्तन अथवा संवर्द्धन निर्णय 20. वैयक्तिक विक्रय 21. विज्ञापन प्रबन्ध 22. विक्रय – संवर्द्धन अथवा विक्रय प्रवर्तन अथवा विक्रय प्रसार

    23. विपणन अनुसन्धान

    24. विपणन संगठन 25. विक्रय संगठन 26. विपणन नियन्त्रण तथा अंकेक्षण 27. विक्रय शक्ति का प्रबध 28. विक्रेता का निरीक्षण एवं नियन्त्रण, अभिप्रेरण तथा निष्पादन का मूल्यांकन 29. विक्रय पूर्वानुमान 30.बाजार विभक्तिकरण का महत्व विक्रय कोटा तथा विक्रय क्षेत्र निर्धारण

    31. विपणन के सामाजिक, नैतिक एवं वैधानिक पहलू 32. सेवाओं का विपणन 33. अन्तर्राष्ट्रीय विपणन 34. विपणन सूचना प्रणाली 35. उपभोक्तावाद, उपभोक्ता संरक्षण, सरकार एवं स्वैच्छिक ( ऐच्छिक ) संगठनों की भूमिका, महत्व, कमियाँ एवं सुझाव 36. हरित विपणन, साइबर विपणन तथा सम्बन्ध विपणन |

    अतिरिक्त जानकारी :-

    इस पुस्तक के लेखक श्री आर.सी. अग्रवाल एवं डॉ. एन.एस. कोठारी हैं। श्री आर.सी. अग्रवाल श्री जैन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बीकानेर के स्नातकोत्तर व्यवसाय प्रशासन विभाग में भूतपूर्व प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष हैं। डॉ. एन.एस. कोठारी इंस्टीट्यूट ऑफ़ ग्लोबल सिनर्जी, अजमेर में प्राचार्य एवं प्रोफेसर हैं।

    MDU B.Com Question Papers

    MDU ( maharshi Dayanand university , Rohtak – Haryana ) B.Com (bachelor of commerce) second year and 3 st and 4 nd semester 2015, 2016, 2017, 2018 and 2019 previous year old Question papers of all subjects of bcom in Hindi and English Medium for all regular and distance ( dde – directorate of distance education) B Com students of MDU, Rohtak. These are the last year bcom examination questions papers of mdu rohtak which can be used as sample or model test B-Com 2nd year and third and fourth semester question papers for mdu university of Haryana.

    Company law and auditing ( कंपनी कानून और लेखा परीक्षा )

    Note: Question No. 1 is compulsory Which consists of 12 short answer type questions, each of 2 marks out of which candidate is required to attempt ten questions. In addition to question no. 1 candidate is required to attempt, four more question from the remaining eight questions each carrying 20 marks.

    नोट : प्रश्न संख्या 1 अनिवार्य है जिसमें 12 लघु उत्तरीय प्रश्न है . जो 2 अंको के है . तथा इनमे से 10 प्रश्नो को करना है . इस प्रश्न के अतिरिक्त शेष 8 प्रश्नो में से 4 और प्रश्न भी करना है जो 20-20 अंको के है |

    a. The conversion of a private company into a public company एक निजी कंपनी का एक सार्वजनिक कंपनी में रूपांतरण

    b. The conversion of a public company into a private company. एक सार्वजनिक कंपनी के एक निजी कंपनी में रूपांतरण

    3. What is a memorandum of association? Describe its contents also discuss the importance of objects clause. पार्षद सीमानियल क्या है ? इसके वाक्यों का वर्णन करे | उद्देश्य वाकया के महत्व की व्याख्या भी कीजिये

    4. What is debenture? What the different types of debentures that can be issued by a company. ऋणपत्र क्या है ? कंपनी कितने प्रकार के ऋणपत्र निर्गमित है

    5. Discuss the powers and duties of company director. कंपनी सञ्चालन की शक्तियों और कर्तव्यों पर चर्चा करें

    6. Discuss fully the objects and advantages of audit. अंकेक्षण के उद्देश्य तथा लाभों को स्पष्ट कीजिये

    7. What do you mean by statutory audit? What are its characteristics and objects? वैधानिक अंकेक्षण से क्या तत्प्रिया है ? इसके लक्षण एवं उद्देश्य को बताइये

    8. “Vouching is the backbone of auditing”. Discuss the importance of vouching in the light of this statement. परमानन अंकेक्षण की रिड की हड्डी है . । कथन की व्याख्या परमानन के महत्त्व पर प्रकाश डालिये

    9. What are the provisions of Indian Companies Act with regard to the appointment wand rights of an auditor of a joint stock company? Explain भरिये कंपनी विधान की अनुसार एक सयुंक्त पूंजी कंपनी का अंकेक्षण की नियुक्ति तथा उसमे अधिकार का सम्बन्ध में क्या प्रावधान है ? समझाइये

    Principles of marketing ( व्यापर के सिद्धान्त )

    Note – Attempt five question in all . Q. No. 1 is compulsory. All questions carry equal marks. नोट - कुल पांच प्रश्नो के उत्तर दीजिये । प्रश्न संख्या 1 अनिवार्य है। सभी प्रश्नों पर समान अंक हैं।

    2. Define marketing. Explain various functions of marketing. विपणन परिभाषित करें। विपणन के विभिन्न कार्यों की व्याख्या करें

    4. What is consumer behavior? Explain the different determinants of consumer behaviors. उपभोक्ता व्यवहार क्या है ? उपभोक्ता व्यवहार के विभिन्न निर्धारक घटको की व्याख्या करें। 5,15

    5. What is market segmentation? Discuss various bases for segmenting the market of a product. बाजार विभक्तिकरण क्या है ? किसी उत्पाद के बाजार को विभक्त करने के लिए विभिन्न आधारों की व्याख्या करें 5,15

    6. What are the different stages of product life cycle? Discuss the utility of product life cycle is a marketing manager. उत्पाद जीवन चक्र के विभिन्न चरण कौन से हैं ? विष्णन प्रबंधक के लिए उत्पाद जीवन चक्र की उपयोगियता की विवेचना कीजिये 10,10

    7. Define the term channels of distribution. Explain the various factors that influence the channel selection. वितरण माध्यमों को परिभाषित करें। वितरण माध्यम के चुनाव के लिए विभिन्न तत्वों का प्रभाव की व्याख्या कीजिये 5,15

    9. Define advertising. Give its objectives. Discuss its various functions in details. विज्ञापन परिभाषित करें। अपने उद्देश्यों बताये । विवरण में अपने विभिन्न कार्यों पर चर्चा करें 3,7,10

    उत्पाद के जीवन चक्र का अर्थ | उत्पाद के जीवन चक्र की परिभाषा | उत्पाद जीवन-चक्र की विभिन्न अवस्थायें या चरण

    उत्पाद के जीवन चक्र का अर्थ | उत्पाद के जीवन चक्र की परिभाषा | उत्पाद जीवन-चक्र की विभिन्न अवस्थायें या चरण | Meaning of product life cycle in Hindi | Definition of product life cycle in Hindi | different stages of the product life cycle in Hindi

    Table of Contents

    उत्पाद (वस्तु) के जीवन चक्र का अर्थ एवं परिभाषा

    (Meaning and Definition of Life Cycle of a Product)

    जिस प्रकार मानव जीवन को विभिन्न अवस्थाओं (शैशव, बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था तथा वृद्धावस्था) में बाँटा गया है, उसी प्रकार प्रत्येक वस्तु के जीवन काल को विभिन्न अवस्थाओं में विभक्त किया जा सकता है तथा प्रत्येक वस्तु को उन विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है। ये विभिन्न अवस्थायें ही ‘वस्तु के जीवन चक्र’ के नाम से जानी जाती है।

    फिलिप कोटलर के अनुसार- “उत्पाद जीवन-चक्र किसी उत्पाद के विक्रय इतिहास की विभिन्न स्थितियों को जानने का प्रयास है।”

    आर्क पैटन के शब्दों में- “एक उत्पादन का जीवन-चक्र अनेक बातों में मानवीय जीवन-चक्र के साथ समानता बताता है, उत्पाद का जन्म होता है, आवेगपूर्ण विकास होता है, प्रबल परिपक्वता पर पहुंचता है और फिर पतन की अवस्था को प्राप्त होता है।”

    संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्रत्येक उत्पाद को अपने जीवन काल में जिन-जिन अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है वे ही उसका जीवन-चक्र कहलाती हैं।

    किसी उत्पाद का जीवन-चक्र कितना लम्बा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस वस्तु की प्रकृति क्या है? कुछ वस्तुओं (जैसे- फैशन की वस्तुओं) का जीवन काल बहुत ही छोटा होता है अर्थात् कम समय में ही वे अपने जीवन की सभी अवस्थायें पूरी कर लेती हैं, जबकि इसके विपरीत, कुछ वस्तुओं का जीवन काल बहुत बड़ा होता है, जैसे- मशीनें, दवाइयाँ आदि। जिस प्रकार कुछ मनुष्य अपने जीवन की सभी अवस्थायें नहीं देख पाते और समय से पूर्व ही संसार से विदा होकर चले जाते हैं उसी प्रकार कुछ उत्पाद भी अपने जीवन काल की सम्पूर्ण अवस्थाओं से गुजरे बिना ही बाजार से अलग-अलग हो जाती है।

    उत्पाद जीवन-चक्र की विभिन्न अवस्थायें या चरण

    (Various Stages of the Produce Life-Cycle)

    उत्पाद जीवन-चक्र की विभिन्न अवस्थाओं को मूल रूप से छः शीर्षकों में अग्रांकित रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है –

    उत्पाद (वस्तु) जीवन-चक्र की विभिन्न अवस्थाओं का संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार हैं

    1. प्रस्तुतीकरण (Introduction ) – यह वस्तु के जीवन-चक्र की प्रथम अवस्था होती है। इस अवस्था में वस्तु को बाजार में प्रविष्ट कराया जाता है, ग्राहकों को वस्तु के सम्बन्ध में जानकारी दी जाती है। इस अवस्था में प्रतिस्पर्धा नहीं होती तथा संवर्धनात्मक कार्यवाही अधिक मात्रा में की जाती है। इस अवस्था में उपभोक्ता वस्तु को खरीदने में हिचकते हैं अतः बिक्री की मात्रा काफी कम रहती है और लाभों की मात्रा बहुत कम या नगण्य होती है। इस कारण जोखिम की मात्रा अधिक होती है। विभिन्न उत्पाद इसी अवस्था में असफल हो जाते हैं और उन्हें अपने जीवन-चक्र के अन्य चरण देखने का अवसर ही नहीं मिल पाता।
    2. विकास (Growth)- प्रथम अवस्था को पार करके वस्तु विकास की अवस्था में प्रवेश करती है। इस अवस्था में वस्तु को उपभोक्ता से मान्यता मिल जाती है। अन्य बाजार भागों में प्रवेश करने के लिए प्रयास किये जाते हैं। इस अवस्था में वस्तु का ब्राण्ड लोकप्रिय होने लगता है और वस्तु को वितरण व्यवस्था मजबूत बनायी जाती है। इस अवस्था में वस्तु के उत्पादन में वृद्धि होने के कारण मितव्ययिता प्राप्त होने लगती है। विपणन की दृष्टि से इस अवस्था में संवर्धन व्यय ऊंचे ही रहते हैं लेकिन बिक्री में वृद्धि के कारण ये व्यय प्रति इकाई कम हो जाते हैं। इस अवस्था में बिक्री तथा लाभों में तेजी से वृद्धि होती है। अधिक लाभों से प्रभावित होकर अन्य उत्पादक भी इस प्रकार की वस्तु उत्पादित करने के लिए प्रेरित होते हैं। विकास की अवस्था में बिक्री में वृद्धि प्रस्तुतीकरण की अवस्था में किये गये प्रयासों का ही परिणाम होता है।
    3. परिपक्वता (Maturity) – इस अवस्था में भी बाजार विभक्तिकरण का महत्व विक्रय वृद्धि लगातार होती है परन्तु उसकी दर में कमी आ जाती है। विक्रय वृद्धि की दर में कमी आने का प्रमुख कारण अनेक प्रतिस्पर्धियों का बाजार में प्रवेश कर जाना होता है। इस अवस्था में वस्तु बाजार में अपना स्थान काफी व्यापक बना लेती है और ग्राहक उसे काफी पसन्द करते हैं। इस अवस्था में वस्तु के मूल्य गिरने लगते हैं, संवर्धन व्ययों में वृद्धि होती है और लाभ की मात्रा कम हो जाती है। विपणन की दृष्टि से इस अवस्था में वस्तु के ब्राण्ड की लोकप्रियता को बनाये रखने के लिए प्रयास किये जाते हैं।
    4. संतृप्ति (Saturation) – इस अवस्था में वस्तु का विक्रय अपनी उच्चतम सीमा पर पहुँच जाता है और फिर विक्रय में स्थिरता आ जाती है अर्थात् वह अपनी सफलता की चरम सीमा को छू लेती है। यह स्थिति उस समय तक बनी रहती है जब तक कि बाजार में वस्तु के नये स्थानापपन्न नहीं आ जाते। इस अवस्था में कड़ी प्रतियोगिता होती है। संवर्धन पर अधिक व्यय किये जाते हैं। वस्तु की लागतें बढ़ने लगती हैं, मूल्य गिर जाते हैं और लाभ की मात्रा बहुत कम हो जाती है। विपणन की दृष्टि से इस अवस्था में उत्पाद के नये-नये प्रयोग खोजे जाते हैं तथा बाजार विभक्तिकरण के द्वारा बाजार के विस्तार के लिए हर सम्भव प्रयास किये जाते हैं।
    5. अवनति (Decline) – इस अवस्था में वस्तु की बिक्री कम होने लगती है क्योंकि अनेक स्थानापन्न वस्तुयें बाजार में अपना स्थान ग्रहण कर लेती हैं। ये स्थानापन्न वस्तुयें वर्तमान उत्पाद से अधिक अच्छी होती है और यहीं कारण है कि ग्राहक अपेक्षाकृत इन स्थानापनों को ही अधिक पसन्द करने लगते हैं तथा वर्तमान वस्तु की बिक्री लगातार कम होती चली जाती है और लाभों की मात्रा लगभग समाप्त हो जाती है। इस अवस्था में प्रायः अनेक कम्पनियाँ वस्तु के उत्पादन को बन्द करने का निर्णय ले लेती हैं जिससे साधनों का किसी नयी वस्तु के उत्पादन के लिए उपयोग किया जा सके।
    6. अप्रचलन (Obsolescence) – यह ऐसी अवस्था होती है जबकि उत्पाद की बिक्री लगभग समाप्त हो जाती है और लाभ की वस्तुयें नहीं के बराबर रह जाती हैं। यह वह अवस्था होती है जबकि अन्य अच्छे स्थानापन्नों के कारण वर्तमान वस्तु का बाजार बाजार विभक्तिकरण का महत्व में कोई स्थान नहीं रह पाता और संवर्धन क्रियाओं का उपभोक्ताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ऐसी स्थिति में उत्पाद को उस वस्तु का उत्पादन बन्द कर देना पड़ता है।
    विपणन प्रबन्ध – महत्वपूर्ण लिंक

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