क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा?

क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा?
पूरी दुनिया में किसानों को उनकी फसल का वाजिब मूल्य देना अभी भी सबसे बड़ी चुनौती है। विकसित देशों में आजमाए गए सभी प्रयास किसी भी वादे को पूरा करने में विफल रहे हैं। इससे किसानों की मुश्किल में इजाफा ही हुआ है। - देविन्दर शर्मा
“1980 के दशक में किसान प्रत्येक डॉलर में से 37 सेंट घर ले जाते थे। वहीं आज उन्हें हर डॉलर पर 15 सेंट से कम मिलते हैं“, यह बात ओपन मार्केट इंस्टीट्यूट के निदेशक ऑस्टिन फ्रेरिक ने कंजर्वेटिव अमेरिकन में लिखी है। उन्होंने इस तथ्य के जरिये इशारा किया कि पिछले कुछ दशक में किसानों की आमदनी घटने की प्रमुख वजह चुनिंदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती आर्थिक ताकत है। फ्रेरिक ने खाद्य व्यवस्था की खामियों को दुरुस्त करने की जरूरत बताई।
दिग्गज आर्थिक अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने पिछले हफ्ते एक अन्य आर्टिकल में लिखा था, ’क्या हमारी खाद्य व्यवस्था चरमरा गई है? गूगल पर ’ब्रोकेन फूड सिस्टम्स’ सर्च करते ही सैकड़ों आर्टिकल, रिपोर्ट और स्टडीज आ जाती हैं। इनसे साफ संकेत मिलता है कि वैश्विक कृषि के ढांचे को नए सिरे से बनाने की सख्त जरूरत है जिसका मुख्य उद्देश्य कामकाज के टिकाऊ तरीके अपनाना और खेती-बाड़ी को आर्थिक तौर पर फायदेमंद बनाना हो।’
कृषि संकट सर्च करने पर टाइम मैगजीन का भी एक लेख सामने आता है। इसका शीर्षक ’विलुप्त होने की कगार पर छोटे अमेरिकी किसान’ ही अपने आप में सारी कहानी कह देता है। आप जितना अधिक पढ़ते हैं, आपको अहसास होता जाता है कि किस तरह फ्री मार्केट और कहीं भी, किसी को भी बेचने की आजादी के नाम पर छोटे किसानों को उनकी जमीनों से बेदखल किया जा रहा है।
बाजार के उदारीकरण के पांच साल बाद भी बड़े खुदरा विक्रेताओं के लिए कोई स्टॉक लिमिट नहीं है यानी वे जितना मर्जी जमाखोरी कर सकते हैं। इसके अलावा रोपाई के समय कमोडिटी फ्यूचर्स मार्केट्स से फसल के भाव का संकेत मिल जाता है।
नेब्रास्का के पूर्व सीनेटर और पशुपालक अल डेविस बताते हैं, “खेती और मवेशी पालने के कामकाज से जुड़ा एक बड़ा तबका विलुप्त होने की कगार पर है। अगर हम ग्रामीण जीवन शैली गंवाते हैं तो हम असल में एक ऐसा बड़ा हिस्सा खो देंगे जिसने इस देश को महान बनाया है।“
इससे सवाल पैदा होता है कि क्या भारत में कृषि बाजारों के योजनाबद्ध उदारीकरण पर कुछ ज्यादा ही उत्साह का प्रदर्शन नहीं किया जा रहा है? अगर कृषि उत्पादों का भाव तय करने का जिम्मा बाजार पर छोड़ना जीत का फॉर्मूला है तो फिर यह समझाने का वक्त गुजर चुका है कि अमेरिकी और यूरोपीय कृषि संकट में क्यों है?
उरुग्वे दौर की वार्ता और 1995 में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) बनने के बाद से ही विकसित देशों द्वारा दी जा रही भारी सब्सिडी विवादास्पद मसला बनी हुई है। पूर्व वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने कई डब्ल्यूटीओ मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। वह अक्सर कहते थे, “अगर आप उम्मीद करते हैं कि भारतीय किसान अमेरिकी खजाने से मुकाबला कर पाएंगे तो यह गलत है।“
कमलनाथ का इशारा अमेरिका में बड़े पैमाने पर दी जाने वाली सब्सिडी की ओर रहता था। बाद में वाणिज्य मंत्री के रूप में अरुण जेटली ने भी कानकुन मिनिस्ट्रियल के समय इसी तरह की राय जाहिर की थी। यहां तक कि अभी भी विकासशील देश सब्सिडी पर गरमागरम बहस की बात कह रहे हैं।
अगर कृषि बाजार कुशल हैं तो वे अमेरिका/यूरोपीय संघ में खेती को बढ़ावा देने में नाकाम कैसे रहें? अमेरिकी कृषि विभाग ने स्वीकार किया है कि 1960 के बाद से खेत से असल आमदनी में गिरावट आ रही है। बावजूद इसके के अमेरिकी सरकार साल दर साल भारी सब्सिडी दे रही है। इसकी वजह बड़ी सरल है।
अमेरिकी सरकार की सब्सिडी का 80 प्रतिशत कृषि-व्यवसाय कंपनियों के खाते में जाता है और बाकी 20 प्रतिशत का लाभ बड़े किसान उठाते हैं। 2007 में न्छब्ज्।क्दृप्दकपं के एक अध्ययन से पता चला था कि अगर विकसित देशों में ग्रीन बॉक्स सब्सिडी (घरेलू कृषि को सहयोग) वापस ले ली जाती है तो अमेरिका, यूरोपीय संघ और कनाडा से कृषि निर्यात में लगभग 40 प्रतिशत तक की गिरावट आ जाएगी।
डब्ल्यूटीओ का गठन होने के 25 वर्ष बाद भी ऑर्गनाइजेशन फॉर इकनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (व्म्ब्क्) देश अपने कृषि क्षेत्र को भारी सब्सिडी दे रहे हैं। यह 2018 में 246 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। इनमें से म्न्-28 देश अपने किसानों को सालाना 110 अरब डॉलर की मदद देते हैं। इसका करीब 50 प्रतिशत डायरेक्ट इनकम सपोर्ट के तौर पर उत्पादकों को मिलता है। कोरोना काल के बाद सब्सिडी में और इजाफा होने का अनुमान है।
यही वजह है कि चरमराई खाद्य प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए बाजारों के पुनर्गठन की आवश्यकता होगी। चाहे अमेरिका, यूरोप या भारत की बात की जाए; हर जगह सरकारी मदद के बावजूद कृषि संकट दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इसलिए प्रस्तावित सुधारों की बुनियाद ऐसी होनी चाहिए कि वह कृषि को आर्थिक तौर पर व्यावहारिक बना सके। इसके बाद ही खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बन सकेगी।
विकसित देशों ने किसानों को बाजार के रहमो-करम पर छोड़ने की तरकीब अपनाई थी, जो नाकाम रही। कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग से भी कुछ खास मदद नहीं मिली है। 103 अरब डॉलर के चॉकलेट उद्योग पर नजर डालने पर पता चलता है कि कोको बीन्स की कीमतें काफी हद तक कमोडिटी फ्यूचर्स से निर्धारित होती हैं। अफ्रीका अकेले दुनिया में कोको का लगभग 75 प्रतिशत उत्पादन करता है लेकिन इस अनुपात में किसानों का फायदा नहीं मिलता है। कोको किसानों का बमुश्किल 2 प्रतिशत रेवेन्यू मिलता है जिसकी वजह से लाखों किसान भारी गरीबी में जी रहे हैं।
ब्रिटेन में डेयरी किसानों ने वाजिब दाम की मांग को लेकर कई वर्षों तक सुपरमार्केट्स के खिलाफ प्रदर्शन किया, ताकि उन पर कीमतों में उतार-चढ़ाव का ज्यादा फर्क न पड़े। रिटेलर जितना बड़ा होता, उसके पास दाम प्रभावित करने की क्षमता उतनी ही अधिक होती है। बड़े रिटेलर अमूमन अधिक मुनाफा कमाने और साथ ही उपभोक्ताओं को कम कीमत में सामान बेचने के लिए किसानों की कमाई में सेंधमारी करते हैं।
किसानों को वाजिब मूल्य देना सबसे बड़ी चुनौती है। विकसित देशों में आजमाए गए सभी प्रयास किसी भी वादे को पूरा करने में विफल रहे हैं। इससे किसानों की मुश्किल में इजाफा ही हुआ है। जब तक किसानों को उचित कीमत का भरोसा नहीं दिया जाता, तब तक इस बात का कोई मतलब नहीं है कि उन्हें अपना उत्पाद कहीं भी (फ्री मार्केट) बेचने की आजादी है।
मार्केटिंग रिफॉर्म्स के रूप में कृषि-व्यवसाय उद्योग की जरूरत को आगे बढ़ाने की बजाय एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है जो सही मायने में किसानों के लिए फायदेमंद हो और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद करे। इस वक्त स्थानीय उत्पादन, स्थानीय खरीद और स्थानीय वितरण के आधार पर एक खाद्य व्यवस्था बनाना भारत की जरूरत है। यह केवल रेगुलेटेड एपीएमसी मार्केट्स के मौजूदा नेटवर्क को मजबूत करने और व्यापार का मजबूत सिस्टम बनाने के बाद ही संभव है जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य- एमएसपी मॉडल प्राइस बन जाता है। ु
खाद्य संकट: बिल चुकाने तक के पैसे नहीं, श्रीलंका में फूड इमरजेंसी का ऐलान, दुकानों के बाहर लंबी कतारें
Economic Emergency in Sri Lanka-श्रीलंका इस वक्त आर्थिक संकट से जूझ रहा है. श्रीलंका ने खाद्य संकट को लेकर आपातकाल की घोषणा कर दी है.
- News18Hindi
- Last Updated : September 03, 2021, 10:36 IST
नई दिल्ली. श्रीलंका इस वक्त आर्थिक संकट से जूझ रहा है. श्रीलंका ने खाद्य संकट को लेकर आपातकाल की घोषणा (Economic Emergency in Sri Lanka) कर दी है, क्योंकि प्राइवेट बैंकों के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा की कमी है. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa)ने मंगलवार को चावल और चीनी सहित अन्य जरूरी सामानों की जमाखोरी को रोकने के लिए सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश के तहत आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी. बता दें कि मंगलवार आधी रात से आपातकाल लागू कर दिया गया है.
जरूरी सामानों के लिए लग रहीं लंबी लाइनें
इमरजेंसी का ऐलान चीनी, चावल, प्याज और आलू की कीमतों में तेज वृद्धि के बाद किया है. आलम यह है कि श्रीलंका में दूध पाउडर, मिट्टी का तेल और रसोई गैस की कमी के कारण दुकानों के बाहर लंबी कतारें लगी हुई हैं. जमाखोरी के लिए सरकार व्यापारियों को जिम्मेदार ठहरा रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे ने सेना के एक शीर्ष अधिकारी को धान, चावल, चीनी और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति के समन्वय के लिए आवश्यक सेवाओं के आयुक्त जनरल के रूप में नियुक्त किया है.
खाद्य जमाखोरी के लिए दंड बढ़ाया गया
सरकार ने खाद्य जमाखोरी के लिए दंड बढ़ा दिया है, लेकिन कमी तब आती है जब 21 मिलियन का देश एक भयंकर कोरोनोवायरस लहर से जूझ रहा है. यहां कोरोना के चलते एक दिन में 200 से अधिक लोगों की मौत हो रही है. कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus) से उबरने के लिए संघर्ष के बीच श्रीलंका (Sri Lanka) अपने भारी कर्ज को चुकाने के लिए संघर्ष कर रहा है.
श्रीलंकाई करेंसी में भारी गिरावट
इस साल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई करेंसी 7.5 फीसदी गिरा है. इसे देखते हुए सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका ने हाल ही में ब्याज दरों में वृद्धि की है. आर्थिक आपातकाल के व्यापक उपाय का उद्देश्य आयातकों द्वारा राज्य के बैंकों पर क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? बकाया ऋण की वसूली करना भी है. बैंक के आंकड़ों के अनुसार, श्रीलंका का विदेशी भंडार जुलाई के अंत में गिरकर 2.8 बिलियन डॉलर हो गया, जो नवंबर 2019 में 7.5 बिलियन डॉलर था, जब सरकार ने सत्ता संभाली थी और रुपया उस समय अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य का 20 प्रतिशत से अधिक खो चुका है।
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खाद्य संकट: बिल चुकाने तक के पैसे नहीं, श्रीलंका में फूड इमरजेंसी का ऐलान, दुकानों के बाहर लंबी कतारें
Economic Emergency in Sri Lanka-श्रीलंका इस वक्त आर्थिक संकट से क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? जूझ रहा है. श्रीलंका ने खाद्य संकट को लेकर आपातकाल की घोषणा कर दी है.
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नई दिल्ली. श्रीलंका इस वक्त आर्थिक संकट से जूझ रहा है. श्रीलंका ने खाद्य संकट को लेकर आपातकाल की घोषणा (Economic Emergency in Sri Lanka) कर दी है, क्योंकि प्राइवेट बैंकों के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा की कमी है. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa)ने मंगलवार को चावल और चीनी सहित अन्य जरूरी सामानों की जमाखोरी को रोकने के लिए सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश के तहत आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी. बता दें कि मंगलवार आधी रात से आपातकाल लागू कर दिया गया है.
जरूरी सामानों के लिए लग रहीं लंबी लाइनें
इमरजेंसी का ऐलान चीनी, चावल, प्याज और आलू की कीमतों में तेज वृद्धि के बाद किया है. आलम यह है कि श्रीलंका में दूध पाउडर, मिट्टी का तेल और रसोई गैस की कमी के कारण दुकानों के बाहर लंबी कतारें लगी हुई हैं. जमाखोरी के लिए सरकार व्यापारियों को जिम्मेदार ठहरा रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे ने सेना के एक शीर्ष अधिकारी को धान, चावल, चीनी और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति के समन्वय के लिए आवश्यक सेवाओं के आयुक्त जनरल के रूप में नियुक्त किया है.
खाद्य जमाखोरी के लिए दंड बढ़ाया गया
सरकार ने खाद्य जमाखोरी के लिए दंड बढ़ा दिया है, लेकिन कमी तब आती है जब 21 मिलियन का देश एक भयंकर कोरोनोवायरस लहर से जूझ रहा है. यहां कोरोना के चलते एक दिन में 200 से अधिक लोगों की मौत हो रही है. कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus) से उबरने के लिए संघर्ष के बीच श्रीलंका (Sri Lanka) अपने भारी कर्ज को चुकाने के लिए संघर्ष कर रहा है.
श्रीलंकाई करेंसी में भारी गिरावट
इस साल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई करेंसी 7.5 फीसदी गिरा है. इसे देखते हुए सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका ने हाल ही में ब्याज दरों में वृद्धि की है. आर्थिक आपातकाल के व्यापक उपाय का उद्देश्य आयातकों द्वारा राज्य के बैंकों पर बकाया ऋण की वसूली करना भी है. बैंक के आंकड़ों के अनुसार, श्रीलंका का विदेशी भंडार जुलाई के अंत में गिरकर 2.8 बिलियन डॉलर हो गया, जो नवंबर 2019 में 7.क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? 5 बिलियन डॉलर था, जब सरकार ने सत्ता संभाली थी और रुपया उस समय अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य का 20 प्रतिशत से अधिक खो चुका है।
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पाकिस्तान में धड़ाम होगी सरकार! इस्लामाबाद में रैली आज, इस्तीफा दे सकते हैं इमरान खान
इमरान खान ने कहा था कि मैं किसी भी हालत में इस्तीफा नहीं दूंगा. मैं आखिरी गेंद तक खेलूंगा और एक दिन पहले उन्हें (विपक्ष) आश्चर्यचकित करूंगा क्योंकि वे अभी भी दबाव में हैं. मेरा ट्रंप कार्ड यह है कि मैंने अभी तक अपना कोई कार्ड नहीं खोला है.
aajtak.in
- इस्लामाबाद,
- 26 मार्च 2022,
- (अपडेटेड 27 मार्च 2022, 4:33 AM IST)
- विपक्ष को भरोसा- कई सांसद इमरान के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं
- इमरान पर पाकिस्तान चुनाव आयोग से जानकारी छिपाने का आरोप
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय के यूट्यूब चैनल का नाम बदलने से अटकलें तेज हो गई हैं कि इमरान खान रविवार को इस्लामाबाद में उनके द्वारा बुलाई गई सार्वजनिक रैली में प्रधानमंत्री पद छोड़ सकते हैं. रैली इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की ताकत का प्रदर्शन है क्योंकि विपक्ष उनकी सरकार को हटाने के लिए नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के लिए तैयार है. बढ़ते आर्थिक संकट से जूझ रहे इमरान खान और सामाजिक चुनौतियों के रूप में उनकी सरकार विपक्ष द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही है.
शनिवार को यूट्यूब चैनल के नाम में हुए बदलाव ने इसके संकेत दिए हैं कि जब चैनल का नाम प्रधानमंत्री कार्यालय था तब चैनल का वैरिफाइड ब्लू टिक था और अब इसका नाम बदलकर 'इमरान खान' कर दिया गया है. इमरान खान ने विपक्ष के विरोध को "डकैत" करार क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? देते हुए विपक्ष पर कड़ा प्रहार किया है और लोगों से 27 मार्च को इस्लामाबाद के परेड ग्राउंड में बड़ी संख्या में आने का आग्रह किया है.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने एक ट्वीट में इमरान खान का जिक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तान के पीएम चाहता हैं कि उनके लोग रविवार को परेड ग्राउंड में आएं. रविवार को हम लोगों का जनसैलाब दिखाएंगे. इमरान खान के लिए राजनीतिक चुनौतियां तब भी बढ़ गई क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? हैं, जब उनकी सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ 6 बिलियन अमरीकी डालर के बचाव पैकेज पर बातचीत कर रही है. साथ ही बेरोजगारी और मूल्य वृद्धि से जूझ रही है.
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विपक्ष को भरोसा- कई सांसद इमरान के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं
इस्लामाबाद में पीपीपी की रैली के बाद 8 मार्च को विपक्षी दलों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था. विपक्ष को भरोसा है कि उसके प्रस्ताव को आगे बढ़ाया जाएगा क्योंकि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के कई सांसद पीएम इमरान खान के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं.
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने शुक्रवार को सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि जैसे-जैसे महत्वपूर्ण अविश्वास प्रस्ताव सत्र नजदीक आता जा रहा है और राजनीतिक गठजोड़ में अनिश्चितता बनी हुई है, सत्ताधारी दल के कम से कम 50 मंत्री राजनीतिक मोर्चे से लापता हो गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 से अधिक संघीय और प्रांतीय मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है क्योंकि विपक्ष ने इमरान खान के खिलाफ संकट खड़ा करना शुरू कर दिया है. बढ़ते दबाव के बीच इमरान खान ने बुधवार को कहा था कि वह किसी भी सूरत में इस्तीफा नहीं देंगे.
जियो न्यूज के मुताबिक, खान ने इस हफ्ते की शुरुआत में कहा था कि सेना के साथ उनके अच्छे संबंध हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी सेना ने खान पर से विश्वास खो दिया है, जिसके कारण खुफिया एजेंसी आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति पर गतिरोध पैदा हो गया है.
पाकिस्तान नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 172 सदस्यों की जरूरत
पाकिस्तानी नेशनल असेंबली में 342 सदस्य हैं और इमरान खान को बहुमत साबित करने के लिए 172 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता है. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेतृत्व वाला गठबंधन 179 सदस्यों का है जिसमें पीटीआई के 155 सदस्य हैं. इमरान खान की सरकार को एमक्यूएम-पी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-कायद (पीएमएल-क्यू), बलूचिस्तान अवामी पार्टी (बीएपी) और ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस (जीडीए) का समर्थन प्राप्त है. इमरान खान और उनकी पार्टी के सदस्य उथल-पुथल को टालने के लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं.
नेशनल असेंबली में इमरान खान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को 28 मार्च तक टालने के बाद उनकी पार्टी ने अपने सहयोगियों को लुभाने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है. विपक्षी दलों ने कहा है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के नारे पर सत्ता में आए खान को विदेशी फंडिंग मामले के संबंध में पाकिस्तान के चुनाव आयोग से महत्वपूर्ण जानकारी छिपाते हुए पाया गया था.
इमरान पर पाकिस्तान चुनाव आयोग से जानकारी छिपाने का आरोप
न्यूज इंटरनेशनल के अनुसार, विदेशी फंडिंग मामले में पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) को सौंपे गए स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के दस्तावेजों से पता चलता है कि 14 अलग-अलग देशों से 2 मिलियन डॉलर से अधिक के लेनदेन की जानकारी है और पीटीआई पार्टी के बैंक खातों में करोड़ों रुपये का स्थानीय लेन-देन ईसीपी अधिकारियों को उपलब्ध नहीं कराया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि इमरान खान की पीटीआई को 2013 में एक व्यवसायी और उसके पाकिस्तानी अमेरिकी पति से 29,800 अमेरिकी डॉलर का दान मिला था, लेकिन उनका दान भी ईसीपी से छुपाया गया था.
कैसे बिटकॉइन अफ्रीका की मदद कर सकता है?
यह अफ्रीका का समय है? क्रिप्टोकरेंसी क्यों अफ्रीकी लोगों को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान कर रही है?
क्रिप्टो विशेषज्ञों के मुताबिक, अफ्रीकी महाद्वीप में डिजिटल संपत्तियों के प्रभाव को बढ़ाने के लिए बड़ी शर्तें हैं। क्रिप्टोकरेंसी के बारे में बात करते समय, अफ्रीका को पहले शीर्ष बाजारों में उल्लेख नहीं किया गया था; इस बीच, 2020 में कई चीजें बदल गई हैं।
नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका धारकों की रैंकिंग का नेतृत्व करने के लिए
वर्ष 201 9 से पता चला कि तुर्की, ब्राजील और कोलंबिया ने क्रिप्टो धारकों की रैंकिंग का नेतृत्व किया। ING अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के आधार पर तुर्की लोगों के 20% के स्वामित्व में क्रिप्टोकरेंसी हैं, और इस तरह की संख्या सबसे अच्छी साबित हुई, जबकि अफ्रीकी देशों ने शीर्ष -5 भी जगह दर्ज नहीं की थी।
हाल के सर्वेक्षण के मुताबिक, नाइजीरिया डिजिटल परिसंपत्तियों के मालिक 32% लोगों के साथ रैंकिंग का प्रमुख है, और दक्षिण अफ्रीका ने शीर्ष -3 में 17% के साथ प्रवेश किया। स्थानीय लोगों को वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अफ्रीका में बिटकॉइन कहां खरीदे उसमें दिलचस्प है।
नए स्तर पर क्रिप्टो ट्रेडिंग को स्थानांतरित करने के लिए मुद्रास्फीति
मुद्रास्फीति वर्चुअल मुद्राओं की लोकप्रियता को आगे बढ़ाने के लिए कुंजी-नोट कारकों में से एक है। स्टेटिस्टा के मुताबिक, उच्चतम मुद्रास्फीति दर वाले शीर्ष 10 देशों की रैंकिंग में अफ्रीकी महाद्वीप के छह प्रतिनिधि शामिल हैं। लोग समझते हैं कि उनके धन चरण-दर-चरण पिघल रहे हैं; इसलिए, क्रिप्टो सेक्टर सबसे अच्छा विकल्प के साथ आया था। जबकि फिएट मनी अपना मूल्य खो रहा है, डिजिटल संपत्ति लोगों को समृद्ध बनाती है।
यूएस ब्लॉकचेन रिसर्च ने दिखाया कि $ 10 000 से अधिक अफ्रीकी मासिक क्रिप्टो ट्रांसफर की औसत राशि 2020 में 316 मिलियन डॉलर के बराबर पहुंच गई (2019 संख्याओं की तुलना में 55% की वृद्धि)।
युवा पीढ़ियों का उछाल
डिजिटल संपत्तियों की लोकप्रियता के प्रभारी कौन है? मध्यम शोध से पता चलता है कि 18-34 आयु वर्ग के 9 0% लोगों ने बिटकॉइन के बारे में सुना है और इस आयु वर्ग के 60% से अधिक डिजिटल मुद्राओं का समर्थन किया है, जो पारंपरिक आर्थिक प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव के साधन के रूप में वर्चुअल संपत्तियों को समझते हैं। युवा पीढ़ियों की उछाल अफ्रीका और बिटकॉइन के बीच सबसे अच्छा कनेक्टर है। अफ्रीका में 60+ निवासियों का प्रतिशत 5.4% है (यूरोप में 24% की तुलना में या उत्तर अमेरिका में 21% की तुलना में, उदाहरण के लिए), जबकि 18-34 आयु वर्ग के लोगों का प्रतिशत 38.7% है।
युवा लोग क्रिप्टो उपयोग के विस्तार में रुचि रखते हैं। इस प्रकार, बीटीसी-स्वीकार्य व्यवसायों की संख्या ऑन-रैंप है। नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, और केनिया अफ्रीका में बिटकॉइन को स्वीकार करने वाले व्यवसायों की संख्या के अनुसार नेता हैं।
अफ्रीकी लोगों को वित्तीय स्वतंत्रता लाने के लिए क्रिप्टो के लिए कुंजी-नोट कारण
हस्तियों के बीच संभावित वित्तीय स्थिरता की धारणा पर भी चर्चा की गई है। उदाहरण के लिए, विश्व प्रसिद्ध सेनेगलिस-अमेरिकी गायक एकॉन उम्मीद करते हैं कि क्रिप्टो अफ्रीकी देशों के लिए नई वित्तीय क्षमताओं को खोल देगा। इस भविष्यवाणी को चैंपियन करने के लिए कौन से मुख्य बिंदु हैं?
- क्रिप्टोकरेंसी लोगों को मुद्रास्फीति प्रक्रियाओं के नकारात्मक प्रभाव से बचने में मदद करते हैं; इसलिए, धन खोने का खतरा गायब हो जाता है।
- क्रिप्टो धारक मोबाइल उपकरणों का उपयोग अपने सामान और सेवाओं के लिए भुगतान करने के लिए कर सकते हैं, कोई सीमा नहीं हैं।
- क्रिप्टो-स्वीकार करने वाले व्यवसायों को दुनिया भर से ग्राहकों को आमंत्रित करने, अपने ग्राहक आधार को बढ़ाने का मौका मिलता है। ऐसी क्षमता हर बिटकॉइन अफ्रीका स्टार्टअप के लिए नया दृष्टिकोण खोलती है।
- अधिकांश अफ्रीकी लोग शेयर बाजार में प्रवेश नहीं कर सकते हैं या सोने की खरीद नहीं कर सकते हैं, जबकि डिजिटल संपत्ति एक आदर्श निवेश उपकरण है।
- वर्चूअल मुद्राएं धारकों को सरकारों से स्वतंत्र होने के लिए सशक्त बनाती हैं, क्योंकि क्रिप्टो संपत्ति पूरी तरह से विकेन्द्रीकृत होती है।
अफ्रीका में क्रिप्टो विस्तार की दिशा में मुख्य बाधाएं
विशाल क्रिप्टो गोद लेने के लिए अफ्रीका की क्षमता विशालकाय है; इस बीच, इस प्रक्रिया को धीमा करने के लिए कुछ बाधाएं हैं:
- इंटरनेट कवर की कमी। अफ्रीका में सबसे कम इंटरनेट प्रवेश है (क्या अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य खो देगा? 39% लोगों के पास वर्ल्ड वाइड वेब तक पहुंच है)।
- उच्च लेनदेन शुल्क। अफ्रीका में शीर्ष -4 बिटकॉइन एक्सचेंज बाजार का एकाधिकार करते हैं, जबकि कुछ अफ्रीकी देशों के पास कोई विकल्प नहीं है।
- विधायी चुनौतियां। 6 अफ्रीकी देश हैं जहां सरकार द्वारा डिजिटल मुद्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
उपरोक्त उल्लिखित बाधाओं को निकटतम वर्षों में कम किया जाना संभव है; इसलिए, अफ्रीका को अन्य महाद्वीपों के बीच उच्चतम क्रिप्टो क्षमता मिलती है।