विदेशी मुद्रा दर राजस्थान

विदेशी मुद्रा दर राजस्थान
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23 महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, 7.94 अरब डॉलर की बड़ी गिरावट
भारतीय रिजर्व बैंकी (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के विदेशी मुद्रा दर राजस्थान लिए भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7.941 बिलियन डॉलर घटकर 553.105 बिलियन डॉलर हो गया है।
विदेशी मुद्रा भंडार करीब दो साल के निचले स्तर पर पहुंचा (फाइल फोटो)
विदेशी मुद्रा भंडार में करीब दो साल में गिरावट हुई है। भारतीय रिजर्व बैंकी (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के लिए भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7.941 बिलियन डॉलर घटकर 553.105 बिलियन डॉलर हो गया, जो करीब दो वर्षों में सबसे निचला स्तर पर आ चुका है। देश के विदेशी मुद्रा भंडार में यह 5वें साप्ताह के दौरान लगातार गिरावट है।
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में हाल के महीनों में तेजी से गिरावट आई है। ऐसा इस कारण, क्योंकि आरबीआई ने रुपए को तेजी से गिरने को बचाने के लिए मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया था और कदम उठाए थे, जिसका असर सीधे तौर पर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा है। इससे पहले, आरबीआई के आंकड़ें के अनुसार, 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 3.007 अरब डॉलर और पिछले सप्ताह 6.687 अरब डॉलर घट गया था।
भारतीय रिजर्व बैंक के सप्ताहिक आंकडे़ं के अनुसार, विदेशी मुद्रा संपत्ति जो कि विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है, 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान 6.527 अरब डॉलर घटकर 492.117 अरब डॉलर हो गई थी। वहीं पिछले दो सप्ताह में विदेशी मुद्रा संपत्ति में क्रमश: 2.571 अरब डॉलर और 5.779 अरब डॉलर की गिरावट आई थी।
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अमेरिकी डॉलर में विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट दर्ज की की गई है। वहीं विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में यूरो, यूके के पाउंड स्टर्लिंग और जापानी येन जैसी गैर-डॉलर मुद्राओं में नुकसान और कुछ में लाभ हुआ है। वहीं 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान सोने के भंडार का प्राइज 1.339 अरब डॉलर घटकर 38.303 अरब डॉलर पर जा चुका है।
आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, इस गणना किए गए सप्ताह के दौरान इंटरनेशनल मुद्रा कोष में भारत के स्पेशल ड्राविंग राइट्स (एसडीआर) का प्राइज 50 मिलियन डॉलर घटकर 17.782 अरब डॉलर रह गया। वहीं 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत की रिजर्व स्टेटस 24 मिलियन डॉलर घटकर 4.902 बिलियन डॉलर हो गई है।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, व्यापार घाटा 43 महीने के उच्चतम स्तर पर, स्वर्ण भंडार भी घटा
मुंबई: देश का विदेशी मुद्रा भंडार छह जुलाई को समाप्त सप्ताह में 24.82 करोड़ डॉलर घटकर 405.81 अरब डॉलर रह गया. यह गिरावट विदेशी मुद्रा आस्तियों में बढ़ोतरी के बावजूद आई है. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों में इस बात की जानकारी दी गई है.
इससे पहले के सप्ताहांत में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.76 अरब डॉलर घटकर 406.06 अरब डॉलर रह गया था.
इससे पूर्व विदेशी मुद्रा भंडार 13 अप्रैल 2018 को 426.028 अरब डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई को छू गया था. आठ सितंबर 2017 को मुद्रा भंडार पहली बार 400 अरब डॉलर के स्तर को लांघ गया था लेकिन उसके बाद से उसमें उतार-चढ़ाव बना रहा.
रिजर्व बैंक के आंकड़े दर्शाते हैं कि समीक्षाधीन सप्ताह में कुल मुद्राभंडार का महत्वपूर्ण हिस्सा, विदेशी मुद्रा आस्तियां 7.39 करोड़ डॉलर की मामूली वृद्धि के साथ 380.792 विदेशी मुद्रा दर राजस्थान अरब डॉलर की हो गईंं.
डॉलर में अभिव्यक्त किये जाने वाले मुद्राभंडार में रखे गये विदेशी मुद्रा आस्तियां, यूरो, पॉंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं की मूल्य वृद्धि अथवा उनके अवमूल्यन के प्रभावों को भी अभिव्यक्त करता है.
समीक्षाधीन सप्ताह में स्वर्ण भंडार 32.99 करोड़ डॉलर घटकर 21.039 अरब डॉलर रह गया.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में विशेष निकासी अधिकार 29 लाख डॉलर बढ़कर 1.489 अरब डॉलर हो गया.
केंद्रीय बैंक ने कहा कि आईएमएफ में देश का मुद्राभंडार भी 49 लाख डॉलर बढ़कर 2.489 अरब डॉलर का हो गया.
व्यापार घाटा 43 माह के उच्चस्तर पर
वहीं, देश का निर्यात कारोबार जून में 17.57 प्रतिशत बढ़कर 27.7 अरब डॉलर पर पहुंच गया. पेट्रोलियम और रसायन जैसे क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन की वजह से निर्यात में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है. हालांकि, कच्चे तेल का आयात महंगा होने से व्यापार घाटा 43 महीने के उच्च स्तर 16.6 अरब डॉलर पर पहुंच गया.
वाणिज्य मंत्रालय के शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन महीने में आयात भी 21.31 प्रतिशत बढ़कर 44.3 अरब डॉलर रहा.
जून, 2018 में व्यापार घाटा नवंबर, 2014 के बाद सबसे अधिक रहा है. उस समय व्यापार घाटा 16.86 अरब डॉलर रहा था. जून, 2017 विदेशी मुद्रा दर राजस्थान में व्यापार घाटा 12.96 अरब डॉलर था.
चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून की तिमाही में निर्यात 14.21 प्रतिशत बढ़कर 82.47 अरब डॉलर रहा है. पहली तिमाही में आयात 13.49 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 127.41 अरब विदेशी मुद्रा दर राजस्थान डॉलर पर पहुंच गया. इस दौरान व्यापार घाटा 44.94 अरब डॉलर रहा.
जून में पेट्रोलियम उत्पादों, रसायन, फार्मास्युटिकल्स, रत्न एवं आभूषण तथा इंजीनियरिंग क्षेत्रों की वजह से निर्यात में उल्लेखनीय इजाफा हुआ.
हालांकि, इस दौरान कपड़ा, चमड़ा, समुद्री उत्पाद, पॉल्ट्री, काजू, चावल और कॉफी के निर्यात में गिरावट आई.
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के अध्यक्ष गणेश गुप्ता ने बढ़ते व्यापार घाटे पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे चालू खाते का घाटा (कैड) प्रभावित होगा, जिससे राजकोषीय मोर्चे पर सरकार की परेशानी बढ़ेगी.
जून माह के दौरान कच्चे तेल का आयात 56.61 प्रतिशत बढ़कर 12.73 अरब डॉलर रहा.
वहीं, सोने का आयात तीन प्रतिशत घटकर 2.38 अरब डॉलर रह गया.
इसके बीच, भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार मई में सेवाओं का निर्यात 7.91 प्रतिशत घटकर 16.17 अरब डॉलर रह गया. माह के दौरान सेवाओं में व्यापार संतुलन 5.97 अरब डॉलर रहने का अनुमान है. मई में सेवाओं का आयात 10.21 अरब डॉलर रहा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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विदेशी मुद्रा भंडार घटा, भुगतान संतुलन का संकट तो नहीं?
दुनिया भर के देशों के सामने आ रहे आर्थिक संकट के बीच अब भारत की आर्थिक स्थिति को लेकर आख़िर चिंताएँ क्यों उठने लगी हैं? क्या विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है इसलिए?
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विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। भुगतान संतुलन में भी कुछ गड़बड़ी दिख रही है। तो क्या ये किसी आर्थिक संकट की ओर इशारा करते हैं?
भुगतान संतुलन को किसी देश की आर्थिक स्थिति को पता लगाने की अहम नब्ज माना जा सकता है। अब यदि इस आधार पर देखें तो भारत की आर्थिक स्थिति कितनी ख़राब या कितनी बढ़िया दिखती है? इस हालात को समझने से पहले यह समझ लें कि भुगतान संतुलन क्या है। तकनीकी भाषा में कहें तो किसी देश के भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि में किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन का विवरण है। लेकिन मोटा-मोटी समझें तो भुगतान संतुलन का मतलब है कि किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में अपने आयात के बिल को चुकाने की क्षमता कितनी है।
भारत को 1991 में अपने सबसे बड़े भुगतान संतुलन संकट का सामना करना पड़ा था। उसी संकट के बाद भारत ने आर्थिक सुधार कार्यक्रम को गति दी। उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने आयात बिल के एक महीने से भी कम समय के लिए भुगतान कर सकता था। इसे ख़तरे के निशान में माना जाता है। क्योंकि यदि किसी देश के पास एक महीने से भी कम भुगतान करने के लिए पैसे न हों तो वह देश कंगाल हो सकता है। इसकी मिसाल श्रीलंका में मौजूदा संकट में भी मिलती है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खाली था और उसके पास सामान आयात करने पर उसके चुकाने के भी पैसे नहीं थे। वह पेट्रोल-डीजल भी नहीं खरीद पा रहा था। बिजली संकट पैदा हो गया था। कई ज़रूरी चीजें आयात नहीं हो पा रही थीं। इसी वजह से वह देश कंगाल घोषित हो गया।
बहरहाल, भारत का भुगतान संतुलन 1991 के बाद से लगातार सुधरा। कभी-कभार उतार-चढ़ाव को छोड़ दिया जाए विदेशी मुद्रा दर राजस्थान तो विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता गया। 1991 के बाद से आयात के बिल को चुकाने के लिए भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के आँकड़ों से पता चलता है कि मार्च 1992 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इतना था कि तब के 4.8 महीने के आयात का भुगतान किया जा सकता था।
2000 के पहले दशक में यह विदेशी मुद्रा भंडार इतना हो गया कि 16 महीने से भी ज़्यादा के आयात का भुगतान किया जा सका था। अप्रैल 2020 में तो यह 28.1 महीने तक पहुँच गया। लेकिन उसके बाद से यह लगातार कम होता गया।
अगस्त 2022 के महीने में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 8.8 महीने के विदेशी मुद्रा दर राजस्थान आयात के लिए भुगतान के बराबर है। यह आँकड़ा अप्रैल 2020 के बाद भारी गिरावट को दिखाता है।
वैसे, आर्थिक मामलों के जानकार इस गिरावट को ख़तरे के निशान के तौर पर नहीं देखते हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि 2 साल से लगातार स्थिति ख़राब होती दिख रही है। सवाल है कि क्या आगे स्थिति सुधरेगी?
विदेशी मुद्रा भंडार 16 सितंबर को समाप्त सप्ताह में कम होकर 545.65 अरब डॉलर पर आ गया है। यह मार्च 2022 में 607.31 अरब डॉलर था। इधर, आज के शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले घरेलू मुद्रा 40 पैसे गिरकर 81.93 रुपये के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गई। आरबीआई ने पिछले कुछ महीनों में रुपये के मूल्य को स्थिर करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इस्तेमाल किया है।
पहले दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक तंगी से गुजरने के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था की सेहत अच्छी बताई जा रही थी। लेकिन अब कहा जा रहा है कि भारत पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। और इसी वजह से भारत की आर्थिक वृद्धि की दर के पूर्वानुमानों को अब पहले से कम किया जा रहा है।
बता दें कि मशहूर अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी ने हाल ही में 2022 में भयावह आर्थिक मंदी की चेतावनी दी है। रूबिनी को संदेह है कि अमेरिका और वैश्विक मंदी पूरे 2023 तक चलेगी और यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपूर्ति के झटके और वित्तीय संकट कितने गंभीर होते हैं।
नूरील रूबिनी वो अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने 2008 के आर्थिक संकट की सटीक भविष्यवाणी की थी। कहा जाता है कि जब उन्होंने आर्थिक संकट के बारे में सबसे पहले बात की थी, तब किसी ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन उनकी सारी बातें सही साबित हुईं। तब अमेरिका गंभीर आर्थिक संकट से गुजरा था। नूरील रूबिनी को उनकी 2008 की सटीक भविष्यवाणी के लिए डॉ. डूम का उपनाम दिया गया था।
कहा जा रहा है कि दुनिया भर की आर्थिक अनिश्चितताओं, बढ़ती महंगाई ने आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है। जब दुनिया की अर्थव्यवस्थाएँ तंग होंगी तो भारत भी प्रभावित होगा। ऐसे हालात में कहा जा रहा है कि सरकार को राजकोषीय घाटा को काबू में रखना मुश्किल होगा। हालाँकि सरकार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 6.4 प्रतिशत रखने के लक्ष्य पर कायम है। लेकिन क्या यह इस लक्ष्य को पाने में सफल होगी?