बेल्ट होल्ड कैंडल पैटर्न कितना विश्वसनीय है?

अतः हम कह सकते है कि प्रमापीकृत परीक्षणअधिक विश्वसनीय परीक्षण है।
अधिक विश्वसनीय परीक्षण है -
प्रमापीकृत परीक्षण: प्रमापिकृत परीक्षण: प्रमापिकृत शब्द का अर्थ है की प्रमाप अथवा स्तर तक लाया हुआ।अतःयह वो परीक्षण है जिसे किसी प्रमाप या स्तरतक ला दिया गया है। यह विश्वसनीय बेल्ट होल्ड कैंडल पैटर्न कितना विश्वसनीय है? परीक्षण है क्योकि यह बच्चों की बुद्धिमत्ता मापने का एक ऐसा परीक्षण है जो:
- विशेषज्ञों के समूह द्वारा निर्मित किया जाता है।
- निश्चित नियमों तथा सिद्धांतों के आधार पर निर्मित होता है।
- एक ही बार में बड़ी आबादी पर प्रयोग कर प्रमाणित किया जाता है।
- प्रश्नों के उत्तर देने तथा मूल्यांकन संबंधी विभिन्न निर्देश भी प्रदान बेल्ट होल्ड कैंडल पैटर्न कितना विश्वसनीय है? करता है।
ध्यान दे
शिक्षक निर्मित परीक्षण
यह किसी विद्यालय के अध्यापक या अध्यापकों के समूह द्वारा निर्मित वह परीक्षण है जो उसी विद्यालय के किसी विशेष कक्षा के बच्चों की ज्ञान एवम् समझ को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है।
सीट बेल्ट क्यों?
दीपावली पर एक गृहणी के नाते अपने घर के कई घरेलू कार्यों को करने के लिए स्वयं चलाते हुए गाड़ी लेकर निकल पड़ी, फल – सब्ज़ी लेना, मेडिकल स्टोर पर उतरना, पूजा की सामग्री खरीदना, मिठाई की दुकान से मिठाई खरीदना, गिफ़्ट शॉप से उपहार लेना, कुम्हार से मिट्टी के दीपक लेना और कबूतर को दाने खिलाना इत्यादि कई ऐसे छोटे-छोटे कार्य थे, जिन्हें करना पड़ा। ऐसे में हर बार गाड़ी में बैठना, सीट बेल्ट लगाना और फिर सीट बेल्ट हटाना, इस लगाने और हटाने की प्रक्रिया में एक सवाल जो मन में आया कि सीट बेल्ट की आवश्यकता ही क्यों है? जब शहर में स्पीड लिमिट ही तय कर दी बेल्ट होल्ड कैंडल पैटर्न कितना विश्वसनीय है? गई है।
अगर दृष्टिकोण को बड़ा करते हैं तो यह पाते हैं कि विश्व के प्रायः सभी देशों में सीट बेल्ट का उपयोग किया जाता है। भारत में भी कई शहरों में इस नियम का बखूबी से पालन किया जा रहा है, चाहे यातायात पुलिस के दबाव से ही सही, पर नियम पालन तो होने लगा है, और धीरे-धीरे हमारी आदतों में भी तब्दील होने लगी है। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लापरवाही बरती जा रही है, जिस पर ध्यानाकर्षक करना चाहिये। वर्तमान में नई गाड़ियाँ जो बाज़ार में उपलब्ध करायी जा रही है उसमें प्रावधान ही ऐसा बना दिया गया है, जिसमें अगर चालक सीट बेल्ट न लगाये तो एक ऐसी ध्वनि बजने लगती है जो आपके मस्तिष्क को परेशान करती है, ऐसे में गाड़ी चालक स्वयं ही बेल्ट लगाने को मज़बूर बेल्ट होल्ड कैंडल पैटर्न कितना विश्वसनीय है? होता है। साथ ही सीट बेल्ट न लगाने पर जुर्माना लगाया जाता है, यह डर आपको सीट बेल्ट लगाने के लिए बाध्य करता है। माना कि सीट बेल्ट की शहर में लगाने की आवश्यकता कम है, एयर बैग भी गाड़ी में सुरक्षा के लिए होते हैं पर यह बेल्ट होल्ड कैंडल पैटर्न कितना विश्वसनीय है? नियम हम सबकी सुरक्षा के लिए बनाया गया है और इसे हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं, अतः इसका पालन आवश्यक है। विशेष तौर पर हाईवे पर चलाते समय सीट बेल्ट का लगाना बेहद जरूरी है। बाहर के देशों में गाड़ी में पीछे बैठे पैसेंजर को भी सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य है।
शिशु के स्लीपिंग पैटर्न के बारे में क्या कहती है रिसर्च, कब देर तक सोता है बच्चा
शिशु के स्लीपिंग पैटर्न के बारे में क्या कहती है रिसर्च, कब देर तक सोता है बच्चा
इस उम्र में बच्चा दिन और रात में थोड़ी-थोड़ी देर में सोता और जागता रहता है। हर 24 घंटे में शिशु लगभग 16 घंटे सोता है। इस दौरान एक बार में शिशु लगभग 40 मिनट तक सोता है।
हर बार बच्चा दूध पीने के लिए कुछ देर के लिए जागता है। 2 से 3 महीने का शिशु रात और दिन में स्लीप पैटर्न विकसित करना शुरू कर देता है। इसका मतलब है कि बच्चा रात के समय ज्यादा सोने लगता है।
अब देर तक सोता है बच्चा
इस समय बच्चे को हर 24 घंटे में 15 से 16 घंटे की नींद लेने की जरूरत होती है। 3 से 6 महीने का बच्चा दिन में दो से तीन बार सो सकता है और हर बार दो घंटे की नींद ले सकता है।
इस उम्र में बच्चा रात को ज्यादा देर तक सोता है। जैसे कि रात के समय 6 महीने तक का शिशु लगातार 6 घंटे तक सो सकता है। रात को बच्चा कम से कम एक बार तो जागता है।
अब दिन में कम सोता है बच्चा
बच्चा जितना बड़ा हो जाता है, उसकी नींद उतनी ही कम होने लगती है। एक साल के होने पर बच्चा हर 24 घंटे में 14 से 15 घंटे की नींद लेता है। 6 महीने का बच्चा रात के समय ज्यादा सोता है और शाम के 6 बजे से रात के 8 बजे के बीच उसे नींद आनी शुरू हो बेल्ट होल्ड कैंडल पैटर्न कितना विश्वसनीय है? जाती है। अब बच्चे को सोने में 30 मिनट से भी कम समय लगता है।
6 से 12 महीने के बच्चे दिन में एक या दो बार झपकी जरूर लेते हैं जो 1 से 2 घंटे की होती है। कुछ शिशु ज्यादा देर तक सो सकते हैं।
क्या कहती है रिसर्च
फिनिश इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ एंड वेलफेयर और यूनिवर्सिटी ऑफ टुर्कू द्वारा की गई एक स्टडी के अनुसार नवजात शिशु में नींद से संबंधी समस्याएं आना आम बात है और दो साल की उम्र का होने तक शिशु का स्लीपिंग पैटर्न सुधर जाता है।
इस स्टडी में पाया गया कि जन्म के बाद पहले दो सालों में शिशु की नींद में बड़े बदलाव आते हैं। 6 महीने के होने तक शिशु को सोने में 20 मिनट लगते हैं जो कि पहले से कम होता है। दो साल की उम्र तक बच्चे रात को सिर्फ एक बार जागते हैं।
अब बच्चा दिन के समय कम और रात को ज्यादा सोता है। पहले दो साल में बच्चे की नींद ज्यादा स्थिर हो जाती है।
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